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हर पहचान मायने रखती है: भारत में ट्रांसजैंडर युवाओं के अधिकारों की मुहिम

 - World News in Hindi

ट्रांसजैंडर युवाओं की पहचान और अवसरों की लड़ाई पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है. भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), सामुदायिक संगठनों और सरकार के साथ मिलकर, शिक्षा, रोज़गार और सम्मानजनक जीवन तक, ट्रांसजैंडर युवाओं की पहुँच बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है. अधिकाँश लोगों के लिए शिक्षा और रोज़गार आत्मनिर्भर जीवन की नींव होते हैं. लेकिन जिनकी पहचान सामाजिक मान्यताओं से मेल नहीं खाती, उनके लिए ये बुनियादी अवसर भी अक्सर दूर का सपना बन जाते हैं.यही हक़ीकत थी सोनाली ख़ान की - भारत की 27 वर्षीय ट्रांस महिला, जिन्हें सहपाठियों की निरन्तर बदसलूकी और शिक्षकों की बेरुख़ी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा.सोनाली बताती हैं, “रोज़ाना का अपमान सहना मुश्किल हो गया था, इसलिए मुझे 12वीं कक्षा में स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ी. इसके कुछ समय बाद परिवार ने भी मुझे घर से निकाल दिया. जिन पड़ोसियों के बीच मैं पली-बढ़ी, उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाया और जिनपर मैं सबसे ज़्यादा भरोसा करती थी, उन्होंने मुझसे मुँह मोड़ लिया.”सोनाली का अनुभव उस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है, जो भारत के हज़ारों ट्रांसजेंडर युवाओं की ज़िन्दगी में आम है. भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, देश के लगभग आधे ट्रांसजैंडर व्यक्ति कभी स्कूल ही नहीं जा पाते और केवल 6% ही औपचारिक क्षेत्रों में रोज़गार पाते हैं. बाक़ी लोग, सोनाली की तरह, हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं - कलंक, ग़रीबी और बहिष्कार के हालात से जूझते हुए.पहचान का संकट2011 की जनगणना में भारत में 4 लाख 87 हज़ार 803 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को दर्ज किया गया था, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है. कई लोग भेदभाव के डर से अपनी पहचान उजागर नहीं करते.जो ट्रांसजैंडर लोग अपनी सच्ची पहचान स्वीकार करते हैं, उनके लिए एक नई चुनौती शुरू होती है - अपने पहचान-पत्रों को नवीन बनाना. सही लैंगिक पहचान दर्शाने वाले दस्तावेज़ों के बिना, ट्रांस व्यक्तियों को सरकारी योजनाओं से वंचित कर दिया जाता है, रोज़गार देने से मना कर दिया जाता है और मकान किराए पर देने या इलाज कराने में भी कठिनाई होती है.सोनाली कहती हैं, “अगर आप ट्रांस व्यक्ति हैं, तो रोज़गार पाना आसान नहीं है. मैंने 50 से ज़्यादा रोज़गार के अवसरों के लिए आवेदन किया, तीन जगह साक्षात्कार के लिए बुलाया गया, और जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं ट्रांस महिला हूँ, तुरन्त मना कर दिया गया.” © UNDP India/Abhir Avasthi नीतिगत प्रगति और चुनौतियाँभारत ने ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अहम क़ानूनी क़दम उठाए हैं. 2014 का नालसा फ़ैसला ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान स्वयं तय करने का अधिकार देता है, और ट्रांसजैंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019, भेदभाव पर रोक लगाता है और शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य तक पहुँच सुनिश्चित करता है.भारत में यूएनडीपी में राष्ट्रीय कार्यक्रम मैनेजर डॉक्टर चिरंजीव भट्टाचार्य ने बताया, “ये उपाय दुनिया में सबसे प्रगतिशील प्रावधानों में से हैं. लेकिन इनके क्रियान्वयन में अभी लम्बा समय लगेगा.”सशक्तिकरण की योजनाएँ2022 में भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने, हाशिये पर मौजूद व्यक्तियों के लिए आजीविका और उद्यम हेतु समर्थन (SMILE) योजना शुरू की.यह योजना ट्रांसजैंडर विद्यार्थियों को आर्थिक मदद देती है, गरिमा गृह (आश्रय गृह) के ज़रिए प्रशिक्षण और सुरक्षित आवास उपलब्ध कराती है, तथा आजीविका के अवसर बढ़ाती है.हालाँकि यूएनडीपी के राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर चिरंजीव भट्टाचार्य का कहना है कि राष्ट्रीय ट्रांसजैंडर पोर्टल पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का पंजीकरण कराना अभी भी चुनौती बना हुआ है.”यूएनडीपी की भूमिकाइस क्षेत्र में भारत स्थित यूएनडीपी कार्यालय ने सामुदायिक संगठनों के साथ मिलकर ट्रांसजैंडर कल्याण के लिए रूपरेखा दस्तावेज़ तैयार किया है, जो शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में सुधार के लिए सरकार को मार्गदर्शन देता है. साथ ही SMILE योजना तैयार करने में भी अहम योगदान दिया.यूएनडीपी ने, बिहार प्रदेश में स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर ट्रांस व्यक्तियों को राष्ट्रीय ट्रांसजैंडर पोर्टल पर पंजीकरण में मदद की, जिससे उन्हें आधिकारिक ट्रांसजैंडर पहचान-पत्र मिल सके. इसके बाद वे बैंक खाते, पैन कार्ड और अन्य दस्तावेज़ अपने नए नाम से नवीन कर सकते हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं.सच्ची भागेदारी का आहवानइस वर्ष के अन्तरराष्ट्रीय युवा दिवस पर, जब दुनिया ने युवा पीढ़ी को सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में सक्रिय भागीदार बनाने पर ज़ोर दिया, यूएनडीपी का मानना है कि ट्रांसजैंडर और नॉन-बाइनरी युवाओं के लिए भी बराबर की जगह होनी चाहिए.सोनाली जैसे ट्रांसजैंडर युवजन के लिए अपनी पहचान मान्यता दिलवाना महज़ काग़ज़ी कार्रवाई नहीं. यह उनके लिए अवसरों से बाहर कर दिए जाने और गरिमा के साथ जीवन का पुनर्निर्माण करने के बीच का अन्तर है.यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित ब्लॉग से लिया गया है.

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