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आईसीसी न्यायाधीशों पर अमेरिकी सरकार के प्रतिबन्ध, 'न्यायिक प्रक्रिया पर गहरी चोट'

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) वोल्कर टर्क ने अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के चार न्यायाधीशों पर अमेरिकी सरकार द्वारा प्रतिबन्ध थोपे जाने की निन्दा की है. उन्होंने शुक्रवार को जारी अपने वक्तव्य में इसे क़ानून के राज की स्थापना और न्यायिक प्रक्रिया को क्षति पहुँचाने वाला क़दम क़रार दिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने गुरूवार को इन चार न्यायाधीशों पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की थी. ये सभी जज अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी और अफ़ग़ान सैन्य बलों द्वारा 2020 में कथित युद्ध अपराध को अंजाम दिए जाने के मामले की पड़ताल कर रहे हैं. साथ ही, ग़ाज़ा में युद्ध के सिलसिले में 2024 में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतनयाहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलंट के विरुद्ध भी गिरफ़्तारी वॉरन्ट जारी किए गए थे.मानवाधिकार उच्चायुक्त ने अपने वक्तव्य में संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार द्वारा, बेनिन, पेरू, स्लोवेनिया और युगांडा की चार महिला न्यायाधीशों पर प्रतिबन्ध थोपे जाने पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया है.उन्होंने इस निर्णय पर तुरन्त पुनर्विचार किए जाने और पाबन्दियों को वापिस लिए जाने का आग्रह किया है.वोल्कर टर्क ने ध्यान दिलाया है कि ये प्रतिबन्ध, न्यायिक प्रक्रिया के संचालन में न्यायाधीशों की भूमिका पर हमला है, और यह एक ऐसा कृत्य है, जोकि क़ानून के राज के प्रति सम्मान और समान संरक्षण व्यवस्था की भावना के विपरीत है.उन्होंने ध्यान दिलाया कि अमेरिका लम्बे समय से इन्हीं मूल्यों के पक्ष में खड़ा रहा है.स्वतंत्रता पर प्रहारइससे पहले, अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने गुरूवार को जारी अपनी एक प्रैस विज्ञप्ति में इन प्रतिबन्धों को अन्तरराष्ट्रीय न्यायिक संस्था की स्वतंत्रता को कमज़ोर करने वाली एक कोशिश क़रार दिया था.आईसीसी के अनुसार, अदालत ने दुनिया भर में 125 देशों के समर्थन से, स्वयं को एक स्थाई व स्वतंत्र न्यायिक संस्था के रूप में स्थापित किया है.शुक्रवार को आपराधिक न्यायालय के सदस्य देशों की असेम्बली की ओर से जारी एक वक्तव्य में अमेरिकी पाबन्दियों को ख़ारिज किया है. इस निकाय पर आईसीसी की प्रशासनिक व्यवस्था व प्रबन्धन की देखरेख का दायित्व है.वक्तव्य में आगाह किया गया है कि इस क़दम से गम्भीर, बेहद चिन्ताजनक अपराधों के लिए जवाबदेही तय करने के लिए वैश्विक प्रयासों को ठेस पहुँचेगी और क़ानून के राज की स्थापना, दंडमुक्ति के विरुद्ध लड़ाई के लिए साझा संकल्प कमज़ोर होगा.अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालयअन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय एक स्वतंत्र न्यायिक संस्था है जिसे 1998 में वजूद में आई रोम संविदा के तहत 2002 में स्थापित किया गया है.2002 में स्थापित यह न्यायालय, मानवता के विरुद्ध अपराधों, युद्ध अपराधों, जनसंहार और आक्रामकता के अपराध के अभियुक्तों की जाँच करने और उन पर मुक़दमा चलाने वाला दुनिया का पहला स्थाई, सन्धि-आधारित अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है.अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना गम्भीर अन्तरराष्ट्रीय अपराधों से निपटने और ऐसी स्थिति में जवाबदेही निर्धारित करने के लिए की गई है, जब राष्ट्रीय स्तरों पर न्यायिक प्रणालियाँ कार्रवाई करने में असमर्थ या अनिच्छुक हों.

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