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इस वर्ष हम एक ऐसी घटना की सालगिरह मना रहे हैं, जिसे वास्तविक तौर पर ऐतिहासिक कहा जा सकता है। सत्तर साल पहले यानी 13 अप्रैल, 1947 को यूएसएसआर और भारत की सरकारों ने मॉस्को और दिल्ली में सरकारी मिशन स्थापित करने का फैसला किया। यह भारत को अपनी आजादी हासिल करने तथा इसकी स्वतंत्रता को मजबूत बनाने में सहायता देने की दिशा में एक और कदम के रूप में आया।
इसके बाद के दशकों में हमारी द्विपक्षीय भागीदारी और बढक़र मजबूत हो गई है, और इसे कभी भी राजनीतिक सुविधा का विषय नहीं बनाया गया। दोनों देशों के समान और आपस में लाभकारी संबंध लगातार विकसित हुए हैं। यह काफी स्वाभाविक है। हमारे लोगों को एक दूसरे के आध्यात्मिक मूल्यों और संस्कृति के लिए हमेशा सहानुभूति रही है, सम्मान रहा है। हमने जो हासिल किया है, आज उसके बारे में हम गर्व कर सकते हैं। रूस की तकनीकी और वित्तीय सहायता से भारत में औद्योगीकरण के ये अगुआ अस्तित्व में आए- भिलाई, विशाखापट्टनम और बोकारो में मेटलर्जिकल कॉम्प्लेक्स, दुर्गापुर में माइनिंग इक्विपमेंट प्लांट, नेवेली में थर्मल पावर स्टेशन, कोरबा में इलेक्ट्रोमैकेनिकल एंटरप्राइज, ऋषिकेश में एंटीबायोटिक प्लांट और हैदराबाद में फार्मास्युटिकल प्लांट। सोवियत, और बाद में रूसी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने भारत में रिसर्च और शिक्षा केंद्रों की स्थापना में भाग लिया। इनमें बॉम्बे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, देहरादून और अहमदाबाद में पेट्रोलियम इंडस्ट्री के रिसर्च इंस्टीट्यूट शामिल हैं।
हमें गर्व है कि हमारे विशेषज्ञों ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को विकसित करने में मदद की। इस फलदायी द्विपक्षीय सहयोग के कारण 1975 में भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया गया। भारतीय नागरिक राकेश शर्मा 1984 में सोयुज टी-11 के चालक दल के सदस्य के रूप में स्पेस में गए थे। हमारे देशों ने अगस्त 1971 में शांति, मैत्री और सहयोग की संधि पर साइन किए, जो द्विपक्षीय संबंधों के मूलभूत सिद्धांतों को आगे बढ़ाती है। मसलन, संप्रभुता के प्रति सम्मान और एक दूसरे के हितों का ध्यान रखना, अच्छा पड़ोसी बनना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कायम करना। 1993 में, रूसी संघ और भारत ने शांति, मैत्री और सहयोग की नई संधि में इन बुनियादी सिद्धांतों के जरूरी होने की पुष्टि की। सामरिक साझेदारी पर साल 2000 में संपन्न घोषणापत्र ने अपने-अपने नजरिये में तालमेल बिठाने का मौका दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और अटके पड़े ग्लोबल और क्षेत्रीय मुद्दों को सुलझाया जा सके।
रूस-भारत द्विपक्षीय संबंधों में वार्षिक शिखर बैठक अब एक स्थापित परंपरा है, जिससे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किए गए प्रयासों पर समयबद्ध तरीके से चर्चा का मौका मिलता है। साथ ही हम दीर्घकालिक लक्ष्यों को तय कर पाते हैं। जून की शुरुआत में हम सेंट पीटर्सबर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक और शिखर सम्मेलन करेंगे। उनके सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकॉनोमिक फोरम में भाग लेने की उम्मीद है, जिसमें भारत पहली बार साझेदार देश के रूप में भाग लेगा।
250 से अधिक दस्तावेजों वाले कानूनी ढांचे को नियमित आधार पर अपडेट किया जा रहा है। व्यापार और अर्थव्यवस्था, विज्ञान और टेक्नॉलजी, संस्कृति और सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में सहयोग पर अंतर सरकारी आयोगों के दायरे में असरदार काम किया जा रहा है। विदेशी मामलों के मंत्रालय, सुरक्षा परिषद कार्यालय और संबंधित मंत्रालय लगातार संवाद बनाए रखते हैं। अंतरसंसदीय और अंतरक्षेत्रीय संबंधों के साथ व्यापार और मानवीय संपर्क का विकास सक्रिय तरीके से हो रहा है। सैन्य सहयोग भी बढ़ाया जा रहा है। जमीनी और नौसैनिक संयुक्त अभ्यास नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।
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