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पाकिस्तान को भारत से रिश्ते सुधारने से रोकेगी नहीं फौज : पूर्व ISI प्रमुख

उन्होंने कहा, ‘‘दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे, लेकिन महत्वपूर्ण कारक जो भारत के विश्वास को नियंत्रित रखता है, वह उसकी यथास्थिति है। किसी भी तरह के बड़े बदलाव, जो बेशक अच्छे लग रहे हो, वह गतिशीलता पैदा करेगा और भारत शायदा उसे संभाल पाने में सक्षम नहीं होगा।’’

दुर्रानी ने किताब में कहा है कि हर प्रधानमंत्री का विश्वासपात्र बनने के बजाए विदेश विभाग और सेना को दीर्घावधि की प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए वार्ता में शामिल रहना चाहिए।

यह पूछने पर कि दोनों देशों की पड़ोस नीति में अपनी व्यवस्था में बदलाव की वजह से बदलाव होने पर यह कैसे संभव है, दुर्रानी ने कहा, ‘‘यदि दोनों देशों की भागीदारी अधिक व्यापक है तो इस बात की संभावना अधिक है कि नीतियों में अधिक परिवर्तन नहीं होगा। वास्तव में मौजूदा सरकार के पास विशेषाधिकार है लेकिन अधिकतर मामलों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह नीतियों पर रुख अपनाने से काम नहीं चलेगा।’’

यह पूछने पर कि क्या वह भारत के इस पक्ष से सहमत हैं कि भारत को पाकिस्तानी सेना से प्रत्यक्ष बात करनी चाहिए? इसके जवाब में पूर्व आईएसआई प्रमुख ने कहा, ‘‘वार्ताएं कई स्तरों पर होती हैं, आधिकारिक और अनाधिकारिक, लेकिन इस प्रक्रिया के लिए राजनीतिक छत्रछाया सफलता के लिए जरूरी शर्त है।

पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का बयान कि ‘भारत और पाकिस्तान को कश्मीर सहित अपने सभी विवादों के समाधान के लिए बात करने की जरूरत है’ पर दुर्रानी ने कहा कि किसी भी सैन्य प्रमुख के लिए शांति वार्ता की वकालत करना अप्रत्याशित नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उनका (बाजवा) दिमाग नहीं पढ़ सकता, लेकिन कोई भी सैन्य प्रमुख उनके वक्तव्य से अलग नहीं कहता। पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने तो क्रिकेट कूटनीति का भी इस्तेमाल किया था।’’

दोनों देशों के बीच कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए मुशर्रफ के चार सूत्रीय फॉर्मूले के बोर में पूछने पर वह कहते हैं कि यह जम्मू एवं कश्मीर में खासा लोकप्रिय है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मैंने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के बारे में जो कहा, उसे याद रखने की जरूरत है। यदि इसे नजरअंदाज किया गया तो बेहतरीन विचार भी किसी काम के नहीं होंगे।’’

गौरतलब है कि मुशर्रफ का चार सूत्रीय फॉर्मूला 2006 में खासा प्रचलित था, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इसमें कश्मीर में सीमाओं को दोबारा रेखांकित किए जाने की वकालत नहीं की गई थी, लेकिन नियंत्रण रेखा पर दोनों पक्षों के लोगों के लिए क्षेत्र में मुक्त आवागमन की बात कही गई थी। इसमें स्वशासन और स्वायत्ता की बात कही गई थी, लेकिन दोनों देशों के बीच विभाजित राज्य की आजादी का जिक्र नहीं था।

मुशर्रफ ने कश्मीर से सैनिकों को चरणबद्ध तरीके से हटाए जाने का भी सुझाव दिया था और संयुक्त रूप से एक तंत्र पर काम करने की बात कही थी, ताकि कश्मीर के लिए रोडमैप को आसानी से लागू किया जा सके। हालांकि, इन सुझावों को कभी तवज्जो नहीं दी गई, क्योंकि ऐसा पहली बार हो रहा था, जब एक पाकिस्तानी शासक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावना के मुताबिक, कश्मीरी लोगों के लिए जनमत संग्रह के ऐतिहासिक रुख से पीछे हट रहा था।
--आईएएनएस

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Web Title-Pakistan Army won not stop Islamabad from improving ties with India: Former ISI chief
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