काठमांडू। नेपाल ने दुर्घटना कम करने और पर्वतारोहण को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से माउंट एवरेस्ट समेत सभी चोटियों पर एकल पर्वतारोहण पर प्रतिबंध लगा दिया है। बीबीसी ने शनिवार को नेपाल पर्यटन बोर्ड के अधिकारियों के हवाले से बताया, ‘‘नए सुरक्षा नियमों के तहत दिव्यांगों और दृष्टिहीनों के लिए भी पर्वतारोहण प्रतिबंधत कर दिया गया है।’’ अधिकारी ने बताया, ‘‘पर्वतारोहण सुरक्षित बनाने और नेपाल के पर्वतों पर मौत की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए नियमों में बदलाव किया गया है। इस सत्र में पर्वतारोहण की कोशिश कर रहे छह पर्वतारोहियों की मौत हो गई, जिसमें 85 वर्षीय मिन बहादुर शेरचान भी शामिल थे। वह एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले सबसे अधिक उम्र के पर्वतारोही बनना चाहते थे।’’ रपट के अनुसार, इस वर्ष रिकार्ड संख्या में पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट फतह करने की कोशिश की। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
विश्व प्रसिद्ध स्विस पर्वतारोही उली स्टेक अपनी एकल एवरेस्ट यात्रा के दौरान मारे गए। उन्हें ‘स्विस मशीन’ के नाम से भी जाना जाता था। अधिकारियों के अनुसार, नए नियमों के तहत विदेशी पर्वतारोहियों को अपने साथ एक गाइड रखना पड़ेगा, जिससे नेपाल के पर्वत गाइडों के लिए नौकरी के नए अवसर भी पैदा होंगे। रपट के अनुसार, कुछ लोगों ने दिव्यांगों और दृष्टिहीनों के पर्वतारोहण पर प्रतिबंध लगाने के नेपाल सरकार के फैसले का विरोध किया है। अफगानस्तिान में तैनाती के दौरान अपने दोनों पैर गंवा चुके और एवरेस्ट पर चढऩे की तैयारी कर रहे हरीबुद्धा मागर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर इस कदम को ‘भेदभाव पूर्ण’ बताया है। उन्होंने कहा कि यह नाइंसाफी भरा कदम है।
मागर ने कहा, ‘‘मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करूंगा, चाहे कैबिनेट कोई भी फैसला ले।’’ काठमांडू पोस्ट की रपट के अनुसार, 1953 में माउंट एवरेस्ट को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी घोषित किए जाने के बाद इसपर चढ़ाई की कोशिश में करीब 300 लोग मारे जा चुके हैं। ऐसा अनुमान है कि पर्वत में अभी भी कम से कम 200 शव दबे हुए हैं। पर्वतारोहियों की मौत कई वजहों से हो जाती है। इनमें से 20 प्रतिशत से ज्यादा मौत जोखिम या एक्यूट माउंटेन सिकनेस(ऊंचाई पर होने वाली बीमारी) की वजह से होती है।
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