सैयद हबीब, कुवैत। कुवैत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया भाषण में एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि उन्होंने अपने संबोधन में किसी भी धार्मिक या सांप्रदायिक शब्दों का उपयोग नहीं किया। न तो हिंदू या मुसलमान शब्द का जिक्र किया गया और न ही इस्लाम धर्म का उल्लेख हुआ। इसके बजाय, प्रधानमंत्री ने "प्रवासी भारतीय" या "भारतीय" शब्दों का इस्तेमाल किया, जो कुवैत के समाज में भारतीयों के योगदान और उनके सामूहिक प्रयासों को सम्मानित करने का एक तरीका था। प्रधानमंत्री ने कुवैत को एक परिवार के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें हर समुदाय और नागरिक की अहमियत है, और इसने कुवैत के समाज की समरसता और एकता को उजागर किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कुवैत से व्यापारिक संबंधों पर भी ध्यान केंद्रित किया, खासकर मोती और अन्य व्यापारों का उल्लेख किया। यहां पर भी उन्होंने कुवैती व्यापारियों के योगदान को सराहा, लेकिन किसी धार्मिक पहचान का जिक्र नहीं किया। "मिनी भारत" शब्द का इस्तेमाल करते हुए, उन्होंने कुवैत में भारतीय समुदाय की महत्वपूर्ण उपस्थिति को बताया, जो कुवैत के सामाजिक और आर्थिक विकास में अपनी भूमिका निभा रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
दिलचस्प यह था कि प्रधानमंत्री ने आने वाले त्योहारों का उल्लेख किया, लेकिन आने वाले मार्च में शुरू होने वाले रमजान का कोई जिक्र नहीं किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्ष और समावेशी था, जहां सभी समुदायों को समान सम्मान और अधिकार दिया गया। यह कुवैत के लिए एक सकारात्मक संदेश था, जो दर्शाता है कि यहां पर धार्मिक पहचान से ऊपर उठकर, समाज की एकता और विकास को प्राथमिकता दी जाती है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण कुवैत के साथ भारत के संबंधों को और भी मजबूत करने का एक अवसर था। कुवैत में भारतीय समुदाय की भागीदारी को महत्व देते हुए, मोदी ने यह संदेश दिया कि भारत और कुवैत दोनों देशों का संबंध एक-दूसरे के विश्वास, सम्मान और सहयोग पर आधारित है। उनके इस भाषण ने कुवैत के समाज में एकता, सौहार्द और सहयोग की भावना को बढ़ावा दिया।
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