बीजिंग।आईटी उद्योग में हर दिन नए-नए आविष्कार होते रहते
हैं। लेकिन पिछले 30 सालों में, भारत
ने आईटी की दुनिया में जो कर दिखाया, वो किसी चमत्कार से कम नहीं माना जाता। एक
कमजोर आर्थिक आधार और निरक्षरता की उच्च दर होने के बावजूद भी भारत जैसा देश विश्व
आईटी निर्माता बन गया। लेकिन इसके विपरीत भारत का इंटरनेट उद्योग ठंडा पड़ा है।
दुनिया के टॉप 10 इंटरनेट कॉर्पोरेशन की बात करें, तो या तो अमेरिका
या फिर चीन का नाम ही सामने आता है। इस सूची में भारत का नाम देखने को नहीं मिलता।
भारतीय सर्च इंजन बाजार की बात करें, तो 97 प्रतिशत शेयरों में गूगल ही मालिक है। यानी
कि भारतीय सर्च इंजन बाजार में दबदबा अमेरिकी का ही है। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया
का हाल भी कुछ ऐसा ही है, जिसमें अमेरिका का ही एकाधिकार है। हाल के वर्षों में चीन में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले
लोगों की संख्या में जबरदस्त उछाल आया है। पूरे यूरोप की जितनी आबादी है, चीन में उतने लोगों के पास इंटरनेट पहुंच चुका है। चीन में इंटरनेट इस्तेमाल
करने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर 73.1 करोड़ हो गई है। अब चीन दुनिया में इंटरनेट
उपभोक्ताओं के मामले में अव्वल है। चाइना इंटरनेट नेटवर्क इंफॉर्मेशन सेंटर के अनुसार
2016 में चीन में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में 6.2 प्रतिशत का उछाल आया है। चीन
में 2016 के दौरान मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट चलाने वाले लोगों की संख्या 69.5 करोड़
रही और यह लगातार बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में देखा जाए
तो भारतीय इंटरनेट उद्योग का वैश्वीकरण ही भारतीय कंपनियों की सफलता में सबसे बड़ा
रोड़ा है। भारतीय बाजार पर अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों ने कब्जा जमा रखा है। जैसे- फेसबुक
और गूगल की ही बात की जाए, तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारतीय लोग पूरी
तरह इन पर निर्भर हैं। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि आज की इस भाग-दौड़ की
जिंदगी में भले ही लोगों के पास एक फोन कॉल करके हाल-चाल पूछने का समय हो ना हो,
लेकिन फेसबुक पर अपने मस्ती-मज़े की फोटोज़ डालने का वक्त हर कोई निकाल ही लेता
है। अब तो आलम ये है कि लोग रिश्तेदारों से भी फेसबुक पर ही फेसटाईम से मिल लेते
हैं, दोस्तों-यारों की खोज-खबर ले लेते हैं। इंटरनेट बाजार के ऐसे हालातों पर मैथ्यू
प्रभाव पूरी तरह से सटीक बैठता है, जिसके मुताबिक- जो मजबूत है वो और मजबूत होता
चला जाता है और जो बड़ा है वो और बढ़ता रहता है। राष्ट्रीय विकास की नजर से देखा जाए तो भारत की
गुणवत्ता में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। एक लंबे अरसे से कार्यालयों, उपक्रमों, कारखानों और कार्यशालाओं में बिजली की
आपूर्ति करने में भारत डांवाडोल ही रहा है। इसी की वजह से इंटरनेट कनेक्शन आज तक
ठीक नहीं हो पाया। जैसे- बिजली और दूरसंचार क्षेत्रों में भी भारत का परिवहन में निवेश
पर्याप्त नहीं है, जिससे ई-कॉमर्स का पैमाना भी सीमित हो
जाता है। भारत में ब्रॉडबैंड कनेक्शन के नाम पर दूरसंचार कंपनियां
उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी कर उन्हें लूट रही हैं। भारत में इंटरनेट की गति दुनिया
में सबसे कम है। भारत की दूरसंचार कंपनियों ने इंटरनेट के कनेक्शन की क्षमता 2जी पर
4 केबीपीएस और 3जी पर 6 केबीपीएस से ज्यादा नहीं मिलती है। इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने
वाली कंपनियों ने अपनी क्षमता से सैकड़ों गुना ज्यादा उपभोक्ताओं को कनेक्शन बांट दिया
है। उपभोक्ता जब इंटरनेट का उपयोग करते हैं तो दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में 2 केबीपीएस की स्पीड भी उपभोक्ताओं को नहीं मिल पाती
है। इस स्थिति में इंटरनेट का उपयोग भारत में किस तरह बढ़ेगा। उद्यमी दृष्टिकोण से, इंटरनेट
उद्योग के विकास में पदानुक्रम और भारत में प्रतिभा पलायन की संस्कृति को प्रचलित बनाना
ही बाधक रहा है। चीन की पारंपरिक संस्कृति में महत्वपूर्ण व्यक्ति बनने पर ज़ोर
दिया गया है, यानी कि अपने लक्ष्य-प्राप्ति के लिए अकेले ही आगे बढ़ने की प्रेरणा।
वहीं दूसरी ओर हिंदू धर्म में `भाग्य के आगे झुकने और नियति
को स्वीकार करने` के विचार को महत्ता दी जाती है। सभी को साथ
लेकर चलने के चक्कर में होता क्या है कि भारत में आईटी प्रतिभाओं के साथ न्याय
नहीं हो पाता और उनके पास भेड़ चाल में शामिल होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं
बचता। इसका असर ये होता है कि उद्यमी पर्यावरण इंटरनेट उद्योग पूरी तरह से
प्रतिकूल बन जाता है। भारत में, जहां एन्जिल निवेश, उद्यम
निवेश और इन्क्यूबेटर मौजूद नहीं हैं, वहां ना तो व्यक्ति खुद विकास कर पाता है और
ना ही इंटरनेट उद्योग के विकास में सहायक होने की भूमिका निभा पाता है। इतनी सब मुश्किलों और खामियों के बावजूद भी, भारत में स्थानीय इंटरनेट कंपनियों के विकास के लिए बेहतरीन अवसर हैं। सामाजिक
अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, भारत में अंग्रेज़ी भाषा के
प्रति लोगों की बढ़ती रुचि, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय में निरंतर सुधार होने से भारत
का जनसांख्यिकीय विभाजन पूरी तरह अस्तित्व में आ रहा है, जो स्थानीय इंटरनेट
कंपनियों के लिए सबसे बड़ा लाभ है। आज भारत हर साल साढ़े पाँच लाख आईटी इंजीनियर बना
रहा है, दुनिया में और कहीं इतनी बड़ी संख्या में इंजीनियर नहीं
बनते, फिर भारत में अंग्रेजी का भी अच्छा-खासा चलन है- तो क्वालिटी-क्वांटिटी
और इंग्लिश- तीनों मिलकर भारत को लाभ पहुँचा रहे हैं। इ-क्यू-क्यू ऐडवांटेज के कारण
ही भारत दूसरे देशों जैसे चीन, फिलीपींस, ऑयरलैंड और इजराइल जैसे देशों से आगे निकल जाता है। चीन क्वांटिटी और क्वालिटी
के मामले में भारत से बेहतर है, मगर उनकी समस्या अभी तक अंग्रेजी की है; फिलीपींस क्वालिटी में पिछड़ता है और ऑयरलैंड-इजराइल क्वांटिटी में भारत की
बराबरी नहीं कर पाते।
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