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ओलम्पिक में भारत: हॉकी की खोई विरासत वापस पाने की कशमकश

दिल्ली। एक दौर था जब भारतीय हॉकी का ओलम्पिक खेलों में दबदबा होता था। टीम से हर ओलम्पिक में पदक की उम्मीद होती थी और टीम निराश भी नहीं करती थी। लेकिन भारतीय पुरुष हॉकी टीम का यह स्वर्णकाल अब गुजरे जमाने की बात हो गया है क्योंकि टीम ने 1980 के बाद से खेलों के महाकुम्भ में कभी भी पोडियम हासिल नहीं किया।

भारतीय पुरुष हॉकी टीम को आखिरी स्वर्ण पदक 1980 में मास्को ओलम्पिक खेलों में मिला था। तब से जो पदक का सूखा छाया है वो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। 39 साल से भारत बिना ओलम्पिक पदक के है। इन वर्षो में भारतीय हॉकी को बुरे दौर से भी गुजरना पड़ा। इसी बुरे दौर में शामिल है बीजिंग ओलम्पिक-2008 जब भारत ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाया था। 1980 के बाद से देखा जाए तो भारतीय हॉकी का ग्राफ ओलम्पिक में गिरता ही रहा है। 1980 के बाद से एक भी टीम शीर्ष-4 में रहते हुए खेलों का अंत नहीं कर सकी। 1984 में टीम 5वें स्थान पर रही थी और यहां से भी टीम अपने स्थान से नीचे ही गई है।

लंदन ओलम्पिक-2012 में तो आलम यह था कि टीम 12वें स्थान पर रही थी। रियो में 2018 में खेले गए ओलम्पिक में भारत की फिजा काफी बनी थी लेकिन टीम 8वें स्थान पर रही थी। हॉकी का स्वर्णकाल खत्म हुए जमाना हो गया है और टीम अभी भी उस दौर को वापस नहीं ला पाई है। इसका कारण जानने के लिए जब आईएएनएस ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लई से बात की तो उन्होंने कहा कि बीते वर्षो में कई नई टीमें उभर के आई हैं और प्रतिस्पर्धा कड़ी हो गई है।

धनराज ने कहा "हम हर ओलम्पिक में उम्मीद लेकर चलते हैं और हर बार हमारा प्रदर्शन अच्छा रहता है, लेकिन देखना यह भी है कि सामने वाली टीम कैसी है। हम सबसे पहले 1928 में पदक जीते थे। उस जमाने में हॉकी बहुत कम होती थी। उस जमाने में हॉकी में कॉम्पटीटर बहुत कम थे। आज की तारीख में आप देखोगे तो हर देश हॉकी खेल रहा है। ऐसा नहीं है कि ओलम्पिक में जाकर हमारा प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। हमने अच्छा किया है लेकिन हम गलती कर जाते हैं।"

उन्होंने कहा "मैं यही नहीं कह सकता कि 1980 के बाद डाउनफॉल आया है। मैं यह कह सकता हूं कि इस दौरान बहुत सारे देश उभर के निकले हैं। हमारी हॉकी जैसी थी वैसी ही है। बीते 20 साल में देखोगे तो कॉम्पटीशन बढ़ गया है।"


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Web Title-India in Olympics: the challenge of regaining the lost legacy of hockey
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