इस अभियान के तहत रोहिंग्याओं के बीच अब तक सिर्फ 550 कॉन्डम पैकेट ही
बांटे जा सके हैं। इसका कारण यह है कि ज्यादातर रोहिंग्या इसके इस्तेमाल को
लेकर अनिच्छुक हैं। अब जिला परिवार नियोजन के अधिकारियों ने सरकार से
रोहिंग्या पुरषों और महिलाओं नसबंदी का अभियान चलाने की इजाजत मांगी है।
लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा, इसे लेकर भी संघर्ष करना पड सकता है।
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वहीं
कैंप में रह रहे रोहिंग्याओं का कहना है कि बडा परिवार कैंपों में उनके
रहने में मदद करता है। रोहिंग्याओं का कहना है कि यहां पानी और खाने को
लेकर काफी संघर्ष है, ऐसे में बच्चे इस काम को बेहद आसानी से कर पाते हैं।
वहीं रोहिंग्या महिलाओं का मानना है कि जन्म दर को कम करना पाप है।
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