वाराणसी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अंतिम चरण के
तहत वाराणसी में मतदान होना है और इसमें चंद दिन ही शेष रह गए हैं। लेकिन वोट किस
पार्टी और किस उम्मीदवार को देना है, यहां का आम मतदाता असमंजस में है, मौन है,
खासतौर से शहरी क्षेत्र में। इस असमंजस ने सबसे ज्यादा बेचैन भाजपा को कर रखा है,
क्योंकि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। यहां से निकलने
वाला कोई भी संदेश देश की राजनीति पर असर डालने वाला होगा।
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मतदाता के इस मौन और असमंजस को दूर करने के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है।
कांग्रेस, सपा, बसपा सहित भाजपा के शीर्ष नेता यहां डेरा जमाए हुए हैं। संघ के एक
वरिष्ठ नेता के अनुसार, सभी 40 आनुषांगिक संगठनों के हजारों कार्यकर्ता वाराणसी
में भाजपा के लिए सक्रिय हैं। लेकिन इस हंगामे और शोर के बीच यहां का मतदाता पूरी
तरह बनारसी हो गया है।
कहीं-कहीं यह चर्चा जरूरत तैर रही है कि लड़ाई भाजपा और कांग्रेस-सपा गठबंधन के
बीच है, लेकिन अंतिम वोट किसे देना है, इस पर मतदाता अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं।
शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र के कबीरचौरा इलाके में पान की एक दुकान पर चल रही
चुनावी चर्चा के बीच दुकानदार शिव जायसवाल (50) बिदक जाते हैं। वह कहते हैं,
"वोट क्यों देना है, अब तो यही समझ नहीं आ रहा। सभी नेताओं को देख लिया। वादे
के सिवा कुछ नहीं मिला। आज तो हमारी हवा खराब है। नेता अपनी हवा बना रहे हैं। जनता
से किसी का कोई मतलब नहीं है। हम फिर क्यों और किसे वोट दें, इस बार सोचना
पड़ेगा।"
बैटरी रिक्शा चालक रियाज अहमद (25) स्थानीय प्रशासन से खुश नहीं हैं। गोदौलिया
इलाके के रियाज को सड़क पर अपना रिक्शा चलाने के लिए हर रोज पुलिस और अन्य लोगों
को दो सौ से चार सौ रुपये देने पड़ते हैं।
रियाज कहते हैं, "यदि ये पैसे हमें न देने पड़े तो हमारा जीवन थोड़ा और आसान
हो सकता है। यह स्थिति सभी रिक्शावालों के साथ है। हमारी इस पीड़ा को कोई सुनने
वाला नहीं है। हम दिनभर मेहनत करते हैं और हमारी गाढ़ी कमाई का अच्छा-खासा हिस्सा
ऐसे ही चला जाता है। हम उसे वोट देना चाहते हैं, जो हमें इस समस्या से मुक्ति दिला
दे। लेकिन इसकी उम्मीद नहीं दिखती है। अब हम वोट किसे दें, समझ नहीं पा रहे
हैं।"
काशी विद्यापीठ के विधि विभाग के अध्यक्ष, राजनीतिक विश्लेषक प्रो. चतुर्भुज
तिवारी इसे आम जनता का नेताओं से मोहभंग होना बताते हैं। तिवारी ने आईएएनएस से
कहा, "कोई भी पार्टी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसने जनता से किए वादे
पूरे किए हैं। अब जनता नेताओं को तौल रही है।"
उन्होंने कहा, "काशी भाजपा का गढ़ है, लेकिन इस बार स्थिति भाजपा के पक्ष में
स्पष्ट इसलिए नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के समय
जो वादे किए थे, आजतक पूरे नहीं कर पाए हैं। अब भी वह वादे ही कर रहे हैं। जनता
वादों से थक गई है।"
कैंट इलाके में ऑटो रिक्शा चलाने वाले धर्मेद्र पटेल (45) हालांकि यहां लड़ाई
भाजपा और कांग्रेस-सपा गठबंधन के बीच बताते हैं। मगर अंतिम जीत किसकी होगी, इस पर
वह मौन हैं। कुछ क्षण बाद कहते हैं "बनारस की जनता कन्फ्यूज है। अभी दो-तीन
दिन में माहौल साफ हो जाएगा। वैसे हवा दोनों पक्षों की है।"
कैंटोनमेंट इलाके के निवासी अनिल जायसवाल खुद को भाजपा का कट्टर समर्थक बताते हैं।
लेकिन इस बार वोट देने को लेकर वह भी असमंजस में हैं।
घर-घर बिजली के मीटर रीडिंग का काम कर दिहाड़ी कमाने वाले अनिल उम्मीदवारों के चयन
को गलत बताते हैं। वह कहते हैं, "शहर दक्षिणी में दादा (श्याम देव राय चौधरी)
के साथ अन्याय हुआ। कैंटोनमेंट का भी उम्मीदवार ठीक नहीं हैं। भाजपा ने गलती की है
और इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।"
अनिल शहर दक्षिणी से लगातार सात बार विधायक रहे श्यामदेव राय चौधरी का जिक्र कर
रहे थे, जिनके बदले इस बार भाजपा ने संघ के युवा कार्यकर्ता नीलकंठ तिवारी को टिकट
दिया है। इसी तरह कैंटोनमेंट सीट से निवर्तमान विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव के
बेटे सौरभ श्रीवास्तव भाजपा के उम्मीदवार हैं। अनिल के अनुसार सौरभ की छवि क्षेत्र
में ठीक नहीं है।
राजनीति शास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आनंद प्रकाश कहते हैं, "काशी की
जनता भले ही अभी मौन है, लेकिन इस मौन का भी अपना अर्थ है। यह भाजपा का गढ़ है, और
प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र भी। ऐसे में भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन दोनों
इस मौन के मायने समझ रहे हैं। इस बार खासतौर से वाराणसी के परिणाम चौंकाने वाले हो
सकते हैं।"
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