अभिषेक मिश्रा, लखनऊ। पिछले 12 घंटों से राजधानी
लखनऊ और प्रदेश के हर जिले में शांति छाई हुई है। कल मतदान का अंतिम दिन था
और ऐसी शांति कि शोले के मुस्लिम चाचा का डायलॉग हूबहू लगता है। भाई इतनी शांति
क्यों छायी है...
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क्योंकि पिछले दो महीनों से अपनी-अपनी प्रचंड जीत
का दावा कर रहे सियासी दलों में त्रिशंकु विधानसभा का डर भी है लेकिन दिल में
कामयाबी का विश्वास लिए उनके नेता सफलता का उल्लास मनाने के लिए मुट्ठियां भींचे
बैठे हैं। प्रदेश के चुनावी घमासान का नतीजा अगली 11 मार्च को आना है। सियासी
दावों से इतर राजनीतिक विश्लेषक किसी लहर से अछूते, इस चुनाव में किसी को भी बहुमत
ना मिलने की आशंका से इनकार नहीं कर रहे हैं। कोई सपा की सरकार बना रहा है तो कोई
भाजपा कि और कोई बसपा के बारे में कह रहा है कि बहन जी प्रदेश की सत्ता पर काबिज
होंगी।
प्रदेश में जहां भाजपा, बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के नेता 403 सदस्यीय विधानसभा
में 300 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, लेकिन चुनाव के आखिरी चरणों
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक टिप्पणी ने त्रिशंकु विधानसभा की आशंका को
हवा दे दी। एक पत्रकार मजाकिया लहजे में कहते हैं कि प्रदेश में 1100 विधानसभा की
सीट हैं और इसमें 300 भाजपा, 300 सपा-कांग्रेस और 300 बसपा को मिल रही हैं। जबकि
हकीकत ये है प्रदेश में 403 विधानसभा की सीट हैं।
वह यह भी कहते हैं कि अजीत सिंह दावा तो 200 सीटों का कर रहे हैं। 2007 में हुए
विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश का सिलसिला टूटा और बसपा 206 सीटें जीतकर पूर्ण
बहुमत के साथ सत्तासीन हुई। साल 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने
सपा के सिर पूर्ण बहुमत की सरकार का ताज सजाया। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों के उलट
इस बार प्रदेश में कोई लहर नहीं दिखाई दे रही है। ना तो सत्ता विरोधी लहर दिखी और
ना ही मोदी या बसपा के पक्ष में एकतरफा बयार बही। इससे प्रदेश में खंडित जनादेश की
आशंका को बल मिला है।
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