देखा जाए तो 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसे महान शासक थे,
जिन्होंने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयत्न किया। अपने पिता हैदर
अली के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठे। पिता की तरह ही
वे अत्यधिक महत्वाकांक्षी कुशल सेनापति और चतुर कुटनीतिज्ञ थे। यही कारण था
कि वे हमेशा अपने पिता कि पराजय का बदला अंग्रेजों से लेना चाहते थे।
अंग्रेज उनसे काफी भयभीत रहते थे। 4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक
के श्रीरंगपट्टना में टीपू को धोखे से अंग्रेजों ने मार दिया। उनकी तलवार
अंग्रेज अपने साथ ब्रिटेन ले गए। ये भी पढ़ें - भूत की आवाज सुनकर पहले भागे मुखिया फिर भागे बच्चे, लेकिन....?
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