नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में देश में प्यार की नाकाम कहानियों का जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने माता-पिता के फैसले को स्वीकार करने के लिए लड़कियों का अपने प्यार की कुर्बानी देना भारत में आम बात है। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 22 साल पुराने एक केस में सुनाया, जिसमें परिजनों को बिना बताए एक प्रेमी जोड़े ने शादी कर ली और बाद में दोनों ने खुदकुशी की कोशिश की थी। हालांकि, इस कोशिश में प्रेमिका की मौत हो गई थी और प्रेमी बच गया था। ट्रायल कोर्ट ने लड़के को लड़की की हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। इस फैसले के खिलाफ लड़के ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए लड़के की उम्र कैद की सजा को रद्द कर दिया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा हो सकता है कि महिला ने पहले बिना अपनी मर्जी से अपने माता-पिता की इच्छा को मानने का फैसला किया हो, लेकिन बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया हो। ऐसा घटनास्थल से नजर आता है, जहां फूलों के हार, चूडिय़ां और सिंदूर पाए गए थे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि महिला ने अपने प्रेमी को बताया हो कि अपने परिवार के विरोध के कारण वह उससे विवाह नहीं करेगी। जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने कहा, हमारे देश में एक लड़की का अपने प्यार की कुर्बानी देना और परिजनों के फैसले को स्वीकार करना आम बात है।
निचली अदालत ने दी थी उम्रकैद
कोर्ट ने कहा कि लड़की और आरोपी एक-दूसरे से प्यार करते थे और महिला के पिता ने कोर्ट ने दिए बयान में कहा था कि जाति अलग होने के कारण उनका परिवार विवाह के खिलाफ था। एक निचली अदालत ने महिला के प्रेमी को कथित तौर पर महिला की हत्या करने का दोषी पाया था और उसे उम्रकैद की सजा दी थी। बाद में निचली अदालत के फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।
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