नई दिल्ली। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राइट टू प्राइवेसी पर सुनवाई पूरी की। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रखा लिया है। आपको बता दें कि इस मामले में 8 दिनों तक सुनवाई चली और निजता के अधिकार पर कई तरह की दलीले दी गई। इस मामले की सुनवाई में यूआईडीएआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी एक कीमती अधिकार है। इसे आधार एक्ट में भी सरंक्षण दिया गया है। आधार के जरिए नागरिक को ट्रेक नहीं किया जा सकता। यहां तक कि अगर कोर्ट अनुमति दे तो भी सरकार इसे सर्विलांस के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कोर्ट में सुनवाई के दौरान एएसजी तुषार मेहता ने कहा था कि कोर्ट का काम कानून बनाना नहीं बल्कि कानून की व्याख्या करना है। चाहे कोर्ट राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताए या नहीं लेकिन आनलाइन के दौर में कुछ भी प्राइवेट नहीं रहा है।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है? बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने सुनवाई के दौरान कहा था कि विचार करने की बात यह है कि मेरे टेलीफोन या ईमेल को सर्विस प्रोवाइडरों के साथ शेयर क्यों किया जाए? मेरे टेलीफोन पर कॉल आती हैं तो विज्ञापन भी आते हैं। तो मेरा मोबाइल नंबर सर्विस प्रोवाइडरों से क्यों शेयर किया जाना चाहिए? क्या केंद्र सरकार के पास डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए ठोस सिस्टम है? सरकार के पास डेटा को संरक्षित करने लिए ठोस मैकेनिज्म होना चाहिए। हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार डेटा इकट्ठा कर रही है लेकिन यह भी सुनिश्चित हो कि डेटा सुरक्षित रहे।
एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि ये डेटा पूरी तरह प्रोटेक्टेड है और अगली सुनवाई में वे बताएंगे। गैर बीजेपी राज्यों के सुप्रीम कोर्ट आने के बाद महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है और उसने केंद्र सरकार का समर्थन किया है। राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि एक धारणा है।
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