निशांत भुवानेका
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जयपुर। कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का राजनीतिक जीवन काफी विवादास्पद रहा है. एक बार फिर से जब 2024 में लोकसभा चुनाव को लेकर देश भर में चर्चा हो रही है तो सोनिया गांधी की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. समय-समय की ही बात है कि एक वक्त पर वह पर्दे के पीछे से देश की सरकार चल रही थी और आज पर्दे के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रही हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्होंने राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचने का निर्णय लिया है और वह भी राजस्थान के रास्ते से. मतलब साफ है कि वह अब चुनाव की सक्रियता से दूर रहना चाहती हैं.
हासिल किया कलंक और श्रेय दोनों
सोनिया गांधी ने एक समय में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस को नया जन्म दिया था और पूरी तरह से इस पार्टी को भी संभालने का काम किया था. इसलिए सोनिया गांधी को काफी श्रेय भी दिया जाता है. हालांकि अब सोनिया गांधी पर पुत्र मुंह में कांग्रेस को उसके हाल पर छोड़ने का भी आरोप लगाया जा रहा है. 78 वर्ष की सोनिया गांधी लोकसभा 2024 में शायद ही कोई भूमिका निभाती हुई नजर आएंगे क्योंकि अब तक उनकी तरफ से कोई बयान जारी किया गया है. राज्यसभा के माध्यम से संसद पहुंचने का रास्ता अपना कर उन्होंने इन सारी अटकलों पर विराम लगा दिया है.
पहली बार बेल्लारी व अमेठी से आजमाई थी किस्मत
सोनिया गांधी ने पहली बार 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी और अमेठी सीट से चुनाव लड़ा था. सोनिया गांधी को इन दोनों लोकसभा सीटों में जीत मिली थी. सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सबसे मजबूत कैंडिडेट सुषमा स्वराज को हराया था जो अपने आप में बहुत बड़ी बात थी. सोनिया गांधी के बयानों और भाषणों पर हमेशा से सवाल खड़ी करती आई भारतीय जनता पार्टी काफी समय तक सोनिया गांधी के आगे हथियार डालती हुई नजर आई. यहां सोनिया गांधी ने खुद को एक राजनीतिक महिला के तौर पर साबित कर दिया था लेकिन अब भी उन्हें कांग्रेस को देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाना था.
2004 में कर दिखाया कारनामा
सोनिया गांधी ने 2004 में वह कारनामा कर दिखाया जो उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था. 2004 में 145 लोकसभा सीट लाकर सोनिया गांधी ने कांग्रेस को देश की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया था. उसे समय भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने यहां तक बयान दे दिया था कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेगी तो वह अपना सर मुंडवा लेंगी. सोनिया गांधी प्रधानमंत्री तो नहीं बनी लेकिन सबको पता है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह की सत्ता में उनका क्या योगदान रहा है.
छूटता गया साथ, रह गईं अकेली
इसमें कोई शक नहीं है कि सोनिया गांधी ने काफी मेहनत और निष्ठा के साथ कांग्रेस को इस मुकाम तक पहुंचा था. हालांकि यह भी सच है कि अकेली सोनिया गांधी यह सब कुछ नहीं कर पाती क्योंकि कांग्रेस को मजबूत करने में सोनिया गांधी का साथ राजीव गांधी के कुछ पक्के दोस्तों ने दिया था जिनमें कमलनाथ,अशोक गहलोत, कपिल सिब्बल, कैप्टन अमरिंदर जैसे बड़े नेताओं का नाम शामिल था. हालांकि जैसे-जैसे वक्त बीतता गया राहुल गांधी की ट्यूनिंग इन नेताओं के साथ उसे तरह की नहीं बैठ पाई जिसके कारण कांग्रेस धीरे-धीरे टूटती बिखरती हुई नजर आने लगी. सोनिया गांधी ने जो मुकाम हासिल किया था उसमें नेताओं की काफी हम भूमिका थी शायद अब सोनिया गांधी समझ चुकी हैं कि वह पर्दे के सामने आकर भी कुछ नहीं कर सकती इसलिए उनका अब पर्दे के पीछे रहना ही सही है।
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