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जांबाज: सीने पर 9 गोलियां खाकर भी ‘चीते’ ने दी मौत को मात

नई दिल्ली। चमत्कार! जी हां, देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के डॉक्टर भी इस चमत्कार को नमस्कार कर रहे हैं। मैदान-ए-जंग दुश्मन की नौ गोलियां सीने पर खाने के बाद भी सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन कुमार चीता ने जिंदगी की जंग जीत ली है। चीता दो महीने से कोमा में थे और बुधवार को उन्हें एम्स ट्रॉमा सेंटर से डिस्चार्ज कर दिया गया। उन्हें 14 फरवरी को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था।
एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों के मुताबिक, चेतन चीता की हालत में पहले से अब काफी सुधार हुआ है। उनको जब अस्पताल में लाया गया था, उस वक्त उनके सिर में बहुत ही गंभीर चोट थी। शरीर का ऊपरी हिस्सा बुरी तरह से फ्रेक्चर था और दाईं आंख पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। उनका जीसीएस (सिर की चोट की गंभीरता तय करने का टेस्ट) का स्कोर एम3 था, जो अब एम6 है। वह पूरी तरह होश में हैं। लोगों की बातों पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि जब चेतन चीता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब उनके शरीर में कई गंभीर चोटें थीं। उनके शरीर से खून बह रहा था। दोनों हाथों में फ्रेक्चर था, चेहरे में कई चोट थी और दाई आंख पर बुलेट इंजरी थी। चीता का इलाज करने वाले डॉ अमित गुप्ता ने बताया कि उनके ब्रेन में इंजरी थी इसलिए उनके सिर का ऑपरेशन किया गया है। ये ऑपरेशन 15 फरवरी को किया गया। उन्होंने बताया कि उनकी सीधी आंख की आईबॉल में भी बुलेट इंजरी थी। इसकी वजह से उनकी आईबॉल में छेद था और उसका भी ऑपरेशन किया गया।
डॉ गुप्ता ने बताया कि चेतन चीता को एडमिट करने के 24 घंटे के अंदर सर्जरी कर उन्हें संक्रमण से बचाने के लिए हैवी एंटबायोटिक दिए गए थे। चीता को वेंटिलेटर पर रखा गया था। सांस लेने के लिए उनके गले में छेद किया गया था ताकि वह आसानी से सांस ले सके। उनके पैर में भी चोट थी। अब उन्हें स्पीच थेरिपी भी दी जा रही है ताकि वह सही से बोल सकें। उन्हें एक महीने तक आईसीयू केयर में रखा गया है। उनके गहरे जख्म लगातार साफ किए गए। उनके इलाज के लिए डॉक्टरों की अलग अलग टीमें बनाई गई थीं। नेत्र रोग विशेषज्ञों की टीम ने आंख का इलाज किया, लेकिन दाईं आंख में बुरी तरह से चोट लगने की वजह से ठीक नहीं हो सकी। डॉक्टरों ने बताया कि कमांडेंट अब सिर्फ लेफ्ट आंख से देख सकेंगे। हालांकि इलाज अभी जारी है।
कमांडेंड चीता का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि उनके इलाज के लिए 100 से ज्यादा का स्टॉफ लगा हुआ था। इसमें डॉक्टरों के अलावा अन्य स्टॉफ जैसे नर्स, टेक्नीशियन और ब्लड बैंक स्टॉफ के लोग शामिल थे। उन्होंने बताया कि कमांडेंड चीता के आत्मविश्वास के चलते वह इतनी जल्दी अस्पताल से वापस लौट सके। उन्होंने बताया कि अमूमन ऐसे मामलों में मरीज को दो महीनों से दो साल तक का समय लग जाता है।
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Web Title-Soldier who fought like a Cheetah in Kashmir back from a month in coma after multiple surgeries
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