प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की
संवैधानिक पीठ में जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, एसके कौल और इंदु
मल्होत्रा शामिल हैं। पीठ ने इस मामले में केंद्र सहित अन्य पक्षकारों की
दलीलें सुनने के बाद गत 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये भी पढ़ें - यहां कब्र से आती है आवाज, ‘जिंदा हूं बाहर निकालो’
बता
दें कि 2006 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा
कि राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक
आंकड़ा देने के लिए बाध्य हैं। कार्ट ने कहा कि इन समुदायों के कर्मचारियों
को पदोन्नत में आरक्षण देने से पहले राज्य सरकारी नौकरियों में उनके
अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं प्रशासनिक कार्यकुशलता के बारे में तथ्य पेश
करेंगे।
इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि क्रीमी लेयर
के सिद्धांत को लागू कर अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय (एससी/एसटी) से आने
वाले सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया
जा सकता। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जाति और पिछड़ेपन का ठप्पा अब भी
समुदाय के साथ जुड़ा हुआ है।
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