उन्होंने सवाल उठाया कि अगर इन मूल्यवर्ग के नोटों को जारी करने के लिए कोई
मंजूरी नहीं दी गई, तो इन मूल्यवर्ग के नोटों को किसने डिजाइन, मुद्रण,
वितरण और अधिकृत किया। रॉय ने कहा, ‘‘यदि आरबीआई बोर्ड ने सार्वजनिक डोमेन
में किसी भी तरह की कोई मंजूरी नहीं दी और ना ही कोई समर्थन जीआर या कोई
अन्य ज्ञात दस्तावेज मौजूद नहीं है, तो यह इन नोटों की कानूनी वैधता पर एक
बड़ा प्रश्नचिह्न है। साथ ही यह 200 और 2,000 रुपये के नोटों की आधिकारिक
(मौद्रिक) स्थिति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। उन्होंने कहा कि इस मामले
की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।’’ अगर ऐसी मंजूरी वास्तव में दी गई है, तो
आरबीआई और सरकार को यह बताना चाहिए कि आरटीआई के तहत पूछे जाने के बावजूद
ये दस्तावेज क्यों उपलब्ध नहीं कराए गए या वे सार्वजनिक क्यों नहीं किए
गए। ये भी पढ़ें - बाबा का चमत्कार या लोगों का अंधविश्वास!
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