आज राखी का त्योहार है। राखी का वास्तविक अर्थ है किसी को अपनी रक्षा के
लिए बांध लेना। इस दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बांधकर अपनी जीवन रक्षा
का दायित्व उन पर सौंपती हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
एक जमाना था, जब कुछ ही पैसों में
बहिने बाजारों से यह धागा खरीद कर भाइयों के हाथों में बांध कर उनसे
सुरक्षा और रक्षा वचन लेती थीं, पर मौजूदा समय में रक्षाबंधन पूरी तरह से
बाजार का हिस्सा व स्टेट्स सिंबल बन गया है। कह सकते हैं कि रक्षाबंधन पर्व
पर फैशन और भौतिकवाद पूरी तरह हावी हो गया है।
यह त्योहार अब
प्रत्यक्ष रूप बाजार से जुड़ा मुनाफे का सौदा हो गया। बड़ी कंपनियां राखी
बनाने का आयात-निर्यात करोड़ों रूपयों में करती हैं। यही कारण है कि
रक्षाबंधन भी आज भावनाओं का कम और दिखावे का त्योहार ज्यादा बन गया है।
नब्बे के दशक के बाद यह त्योहार पूरी तरह बदल गया है। सूत की एक डोरी से
बांधने की परंपरा के इस पर्व के बदलाव के पीछे कई कारण हैं। राखी का
मार्केट मौजूदा समय में करोड़ों में पहुंच चुका है।
मौजूदा समय में
राखियां फैशन व स्टेट्स का सिंबल बन रही हैं और बहन भाई दोनों ही लेटेस्ट व
डिजाइन राखियां पसंद कर रहे हैं। आज राखी के विभिन्न कॉर्मशियल ब्रांड
बाजार में उपलब्ध हैं। अब बहन, भाई की कलाई पर एक धागा बांध कर ही अपनी
रक्षा का वचन नहीं लेती, वरन उसे महंगी राखी बांधकर कीमती तोहफे की उम्मीद
करती हैं। इन हालातों को देखकर लगता है कि रक्षाबंधन पर्व पर फैशन व
भौतिकवाद हावी हो रहा है।
बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर गली-गली में
बनने वाली व इलेक्टृॉनिक गैजेट्स, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक नोटबुक से लेकर
लैपटॉप, मोबाइल या ऐसे ही दूसरे तोहफों की एडवांस डिमांड रख रही हैं।
हालांकि गरीब व निम्न मध्य वर्ग में आज भी सस्ती फाइबर की राखी उसी
प्रेमभाव से बांधी जाती हैं।
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