आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में हुर्रियत के कुछ नेताओं के जेल में बंद
होने के बावजूद सरकार द्वारा सभी से सकारात्मक बातचीत करने की ओर इशारा किए
जाने के बाद भी हुर्रियत नेताओं ने शर्मा की नियुक्ति पर अब तक चुप्पी साध
रखी है। कश्मीरी युवकों के कश्मीर समस्या के अलावा हाल के दिनों में
अतिवादी होने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य में वर्ष 2008 के
जमीन विवाद और बुरहान वानी के मारे जाने के बाद वर्ष 2016 के सडक़ों पर
लगातार हिंसा की घटनाओं के पहले राज्य में लगभग शांति थी। शर्मा ने कहा,
किसी भी तरह युवाओं और छात्राओं के दिमाग को किसी अन्य जगह लगाना होगा। यह
सुलझाने का बिंदु है। मैंने बहुत करीब से कश्मीर में हिंसा देखी है। मैं
श्रीनगर में पदस्थापित था, इसलिए इस तरह की हिंसा देखकर मुझे बहुत पीड़ा
होती है, दुख होता है। ये भी पढ़ें - ऐसे करें पूजा, घर में कभी नहीं आएगी धन की कमी
सरकार की ओर से कश्मीर की समस्या सुलझाने के
लिए पहले नियुक्त शांतिदूतों और अन्य पहल पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा
कि वह कुछ नए विचारों पर अमल की कोशिश करने के लिए अविलंब तैयार हैं।
शर्मा ने कहा, मैं पहले के वार्ताकारों की रिपोर्ट पढ़ रहा हूं, लेकिन
दूसरी ओर मैं कुछ नए उपायों पर भी विचार कर रहा हूं। शांति स्थापित करने का
काम शर्मा को पहली बार नहीं दिया गया है। इससे पहले, इसी वर्ष जून में
उन्हें बोडो और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) समेत असम में
उग्रवादी समूहों से बातचीत करने का कार्य सौंपा गया था। शांति स्थापना के
पहले के कार्य और अब कश्मीर में चल रहे इस प्रयास के बीच अंतर पूछे जाने पर
उन्होंने कहा, सबसे बड़ा फर्क यह है कि पूर्वोत्तर में पाकिस्तान या किसी
तीसरे देश की संलिप्तता नहीं थी।
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