नई दिल्ली। आने वाले दिनों राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी हिंदी में ही भाषण देना पड़ सकता है, क्योंकि उन्होंने ‘आधिकारिक भाषाओं पर संसद की समिति’ की उस सिफारिश को मंजूर कर लिया है जिसमें राष्ट्रपति और ऐसे सभी मंत्रयों और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देने और बयान जारी करने की बात कही गई है, जो हिंदी पढ़ और बोल सकते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मंत्रिपरिषद के ज्यादातर मंत्री मुख्य तौर पर हिंदी में ही भाषण देते हैं। इस समिति ने हिंदी को और लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 साल पहले 117 सिफारिशें दी थीं। उन पर केंद्र ने राज्यों के साथ गहन विचार-विमर्श किया था। मुखर्जी का कार्यकाल जुलाई में पूरा होगा और अगर इस निर्णय को लागू किया जाएगा तो अगले राष्ट्रपति हो सकता है कि केवल हिंदी में भाषण दें।
राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन को सभी मंत्रालयों, राज्यों और प्रधानमंत्री कार्यालय के पास अमल के लिए भेजा गया है। मुखर्जी ने जिन अन्य सिफारिशों को स्वीकार किया है, उनमें एयर इंडिया के टिकटों पर हिंदी का इस्तेमाल करने, एयर इंडिया के विमानों में आधी से ज्यादा हिंदी की पत्रिकाएं और अखबार देने और केंद्र सरकार के कार्यालयों में अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की ज्यादा खरीदारी करने की बात शामिल है। समिति ने सिफारिश की थी कि सभी भारतीय विमानों में यात्रियों के लिए हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं हों, क्योंकि ‘विमानन कंपनियां हिंदी की बड़े पैमाने पर उपेक्षा करती हैं।’ हालांकि राष्ट्रपति ने नागर विमानन मंत्रालय से कहा कि यह बात सिर्फ सरकारी एयरलाइन तक सीमित रखी जाए।
मुखर्जी ने संसदीय समिति की कुछ सिफारिशों को खारिज भी किया है। इनमें पब्लिक शेयरहोल्डिंग वाली कंपनियों में पत्राचार के लिए हिंदी का उपयोग सुनिश्चित करने और प्राइवेट कंपनियों के लिए अपने उत्पादों के नाम और उनसे जुड़ी सूचना हिंदी में देना अनिवार्य करने की सिफारिशें शामिल थीं। इन्हें खारिज करने की वजह यह हो सकती है कि प्राइवेट कंपनियों पर यह नियम थोपा नहीं जा सकता है। हालांकि, राष्ट्रपति के आदेशों के अनुसार, सभी सरकारी और अर्द्ध-सरकारी कंपनियों और संगठनों को अपने उत्पादों के नाम हिंदी में बताने होंगे।
सरकारी नौकरी के लिए हिंदी अनिवार्य नहीं
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