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मोदी सरकार के कृषि सुधार पर रार, किसान आंदोलन खत्म होने का इंतजार

Modi government agrees on agrarian reform, waiting for farmer agitation to end - Delhi News in Hindi

दिल्ली। आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश में जुटी मोदी सरकार ने 'वोकल फॉर लोकल' के मंत्र के साथ कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर भारत अभियान का आगाज किया तो गांव, गरीब और किसान को उसके केंद्र में रखा और इनसे जुड़ी तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों पर विशेष जोर दिया गया। इसी कड़ी में सरकार ने कृषि सुधार के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए अध्यादेश के माध्यम से कृषि से संबंधित तीन नये कानूनों को लागू किया। लेकिन इन कानूनों को लेकर किसान और सरकार के बीच तकरार जारी है।

संसद के मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू किया गया। मगर अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।

सरकार का कहना है कि कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020 से किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए राज्यों में संचालित एपीएमसी मंडियों के अलावा एक और विकल्प मिला है और राज्यों में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियों के बाहर खरीद-बिक्री पर शुल्क नहीं होने से किसानों को उनके उत्पादों का वाजिब दाम मिलेगा। मगर, आंदोलन की राह पकड़े किसानों का मानना है कि एपीएमसी के बाहर कॉरपोरेट खरीदार भले ही कुछ साल उन्हें अच्छा दाम दे मगर इससे जब एपीएमसी मंडियां तबाह हो जाएंगी तब निजी मंडियों के कॉरपोरेट खरीदारों को उन्हें औने-पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर होना पड़ेगा। इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर भी उनको एतराज है। हालांकि सरकार ने एपीएमसी संचालित मंडियों के भीतर और बाहर कारोबार में समानता लाने की ²ष्टि से एक समान शुल्क की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है। सरकार ने किसानों को इसके अलावा कानून से जुड़ी किसानों की अन्य आपत्तियों का भी समाधान करने के प्रावधानों शामिल करने का आश्वासन दिया है।

सरकार का कहना है कि कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 से छोटे किसानों को लाभ मिलेगा क्योंकि वे प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, होलसेलर्स, बड़े रिटेलर्स और एक्सपोटर्स के साथ फसल का करार कर पाएगा और फसल की कीमत पहले ही तय हो जाएगी जिससे हार्वेस्टिंग के समय फसल का बाजार भाव कम होने पर भी किसानों को करार में पहले से तय कीमत ही मिलेगी। साथ ही, किसानों को नई टेक्नोलोजी, बीज व अन्य साधन स्पांसर मुहैया करवाएगा जोकि छोटे किसानों के लिए मुश्किल होता है। मगर, किसानों को आशंका है कि खेती के इस करार में उन्हें अपनी जमीन के मालिकाना हक से वंचित होना पड़ सकता है। सरकार ने इस पर स्पष्टीकरण दिया है करार फसल को होगा न कि खेत का। इस कानून में भी सरकार ने किसानों के सुझावों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।

सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के जरिए अनाज, दलहनों, आलू, प्याज, खाद्य तेल व तिलहनों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी से बाहर कर दिया है। नये कानूनी प्रावधानों के अनुसार, विशेष परिस्थितियों में ही इन पर स्टॉक लिमिट लगाई जा सकती है। बताया जाता है कि इन वस्तुओं को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने का मकसद इनके भंडारण, प्रसंस्करण की सुविधा का विस्तार करना है जिसका फायदा किसानों को ही मिलेगा।

कृषि क्षेत्र सुधार के लिए नए कानून लाने और कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के तहत की गई घोषणाओं से पहले ही मोदी सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के आम बजट में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 16 सूत्री कार्ययोजना की घोषणा की थी। इन घोषणाओं के तहत कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कृषि उड़ान से लेकर खराब होने वाले कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए पीपीपी मोड में किसान रेल चलाने का एलान शामिल था।

कोरोना काल में केंद्र सरकार की ओर से एक लाख करोड़ रुपये के कृषि इन्फ्रास्ट्रक्च र फंड की घोषणा कृषि सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे फसलों की कटाई के बाद के प्रबंधन की बुनियादी सुविधा यानी पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्च र का निर्माण होगा जिसका लाभ आखिरकार किसानों को होगा।

मोदी सरकार द्वारा 2020 में कृषि के क्षेत्र को बढ़ावा देने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के मकसद से लिए गए तमाम फैसलों में अहम तीनों नये कृषि कानून हैं जिन्हें सरकार किसी भी सूरत में वापस लेने को तैयार नहीं है और दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे किसान संगठन तीनों कानूूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं।

सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की वार्ताएं बेनतीजा रहने के बाद अब किसानों की ओर से 29 दिसंबर को फिर अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है। किसान संगठनों की ओर से अगले दौर की वार्ता के लिए जो एजेंडा सरकार के पास भेजा गया है उसमें शामिल चार मुद्दों में तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाली क्रियाविधि पहले नंबर पर है।

इसके अलावा, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए लाभदायक एमएसएपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर वे सरकार से बातचीत करना चाहते हैं। अगले दौर की वार्ता के लिए प्रस्तावित अन्य दो मुद्दों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में ऐसे संशोधन जो अध्यादेश के दंड प्रावधानों से किसानों को बाहर करने के लिए जरूरी हैं और किसानों के हितों की रक्षा के लिए विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के मसौदे में जरूरी बदलाव शामिल हैं।

ऐसे में साल 2020 के आखिर में मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए कृषि सुधार पर जारी तकरार के खत्म होने का इंतजार बना रहेगा। (आईएएनएस)

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