नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को केरल के सबरीमाला में विराजमान भगवान अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच में चार जजों ने अलग-अलग फैसला पढ़ा। सभी के फैसले का निष्कर्ष एक ही था, इसलिए इसे बहुमत का फैसला कहा जा सकता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पीठ में शामिल पांच जजों ने 4-1 के बहुमत से सुनाए गए अपने फैसले में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सैकड़ों वर्षों से लगी रोक हटा दी लेकिन पीठ में शामिल एक मात्र महिला जज इंदु मल्होत्रा ने इस फैसले पर अपनी सहमति जताई। पीठ में शामिल चार पुरुष जजों के महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाना और महिला जज का इस पर असहमति जताना काफी दिलचस्प है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने बहुमत के फैसले में कहा कि ‘उम्र के प्रतिबंध की प्रथा को जरूरी धार्मिक पद्धति बताकर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती।’ कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह रोक महिलाओं की गरिमा कम करती है। जस्टिस मल्होत्रा ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।
सबरीमाला केस में अन्य जजों के फैसले पर अपनी असहमति जताते हुए जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि धार्मिक मामलों में तार्किकता का धारणा नहीं लाई जा सकती। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत पूजास्थल एवं देवी-देवता संरक्षित हैं। इसलिए कोर्ट को ‘सती प्रथा’ जैसी सामाजिक बुराई के मुद्दों को छोडक़र अन्य धार्मिक पद्धतियों को खत्म करने पर निर्णय नहीं करना चाहिए।
पीठ में शामिल एक मात्र महिला जज जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि यह याचिका देखे जाने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूजा-पाठ की अन्य पद्धतियों एवं प्रथाओं पर असर डालेगा। जस्टिस मल्होत्रा ने अपनी अलग राय रखते हुए कहा कि धार्मिक परंपरा को केवल समानता के अधिकार के आधार पर परीक्षण नहीं कर सकते। धार्मिक रूप से कौन सी प्रथा जरूरी है इसका फैसला श्रद्धालुओं करें न कि कोर्ट।
जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला केवल सबरीमाला मंदिर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका व्यापक असर होगा। गहरी आस्था वाले धार्मिक भावनाओं के मुद्दों में कोर्ट को सामान्य रूप से दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस संवैधानिक पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मुल्होत्रा शामिल हैं। इसमें जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग हटकर अपना फैसला सुनाया। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
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