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अब परिवार के साथ चैन की जिंदगी जीना चाहता है आतंक का पर्याय रहा जगन गुर्जर

Jagan wants to live a life of peace with family now Jagan Gurjar - Dholpur News in Hindi

धौलपुर। कभी चंबल घाटी में आतंक का पर्याय रहा 11 लाख का ईनामी दस्यु जगन गुर्जर जेल से छूटने के बाद अब समाज की मुख्य धारा से जुड़ते हुए परिवार के साथ चैन की जिन्दगी जीना चाहता है और खेती करना चाहता है। जेल से रिहा होने के बाद जगन ने बताया कि मुझे पुलिस ने दूसरी बार डकैत बनाया। 36 वर्षीय जगन अपने पिता शिवचरन का सबसे बड़ा बेटा है। जगन मूलरूप से बसई डांग के भवूतीपुरा का निवासी है। दुश्मनी की वजह से 2010 में परिवार गांव छोडक़र कंचनपुर थाना इलाके के धोंसपुर गांव में रहने लगा। गुर्जर आंदोलन के दौरान सीएम वसुंधरा राजे के धौलपुर महल को उड़ाने की धमकी देने के बाद जगह ज्यादा प्रकाश आया। जगन के खिलाफ दो दर्जन हत्या, लूट, डकैती, हत्या का प्रयास, चौथ वसूली आदि के करीब 70 मुकदमे दर्ज थे। जिनमें से 69 में कोर्ट ने बरी कर दिया है। एक मुकदमे में बाड़ी कोर्ट 10 वर्ष की सजा सुनाने एवं बाद में हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर 16 मार्च को जगन गुर्जर धौलपुर जेल से बाहर आ गया।
जगन ने बताया कि मेरे जीजा की हत्या कर दी गई थी। जिसका बदला लेने के लिए मैंने 1999 में बंदूक उठाई। उसके बाद समर्पण के बाद जेल गया। जमानत पर बाहर आने के बाद समाज की मुख्यधारा में जुडऩा चाहता था। खान में मजदूर लगाने का ठेका ले लिया था। इसके लिए टै्रक्टर भी खरीद लिया था और रोजी रोटी कमाने में लग गया था। उसने बताया कि यह काम एक दो माह ही चला पाया था कि बाड़ी कोतवाली पुलिस ट्रैक्टर घर से उठा लाई और बंद कर दिया, जो कि आज भी थाने में ही सड़ रहा है। इसके बाद पुलिस ने झूठे केस लगाना और उस पर इनाम घोषित करना शुरू कर दिया। इसलिए दूबारा डकैत बन गया। जगन गुर्जर ने बताया कि उस पर हत्या के जितने भी केस लगाए वे झूठे हैं, केवल एक ह्त्या का केस सही है, जिसमें जीजा का बदला लेने के लिए हत्या की थी।
जगन गुर्जर ने बताया कि मेरे तीनों भाइयों ने आज तक कुछ नहीं किया है, सभी केस झूंठे लगाए गए हैं। मैंने तो केवल जीजा की मौत का बदला लिया था। जगन गुर्जर ने बताया कि अब तो किसान बनकर खेती करना चाहता हूं। बचा हुआ जीवन परिवार के साथ चैन से गुजारना है। मेरी तीन पत्नियां दो बच्चे व एक लडक़ी हैं। उसने बताया कि अपने आप कोई डकैत नहीं बनता, मजबूरी बना देती है। जब गांव में दो पक्षों में झगड़ा हो जाता है पुलिस एक पक्ष की तरफदारी करने लगती है तो दूसरे पक्ष के पैर टूट जाते हैं। इस पर बदला लेने के लिए मजबूरी में डकैत बनना पड़ता है। पेट की खातिर कोई डकैत नहीं बनता। 200- 500 रुपए रोजाना के तो वैसे ही कमा सकता है। मैं युवाओं को यही कहुंगा कि वे अपराधी नहीं बनें। अपराधी का जीवन बहुत बुरा है। कोई झगड़ा फसाद है तो समाज में मिल बैठकर सुलझाएं मेहनत मजदूरी करके परिवार के साथ चैन से रहे।
जगन ने बताया कि लोगों को तो पहले से पता है, सब मेरे बारे में पहले से जानते हैं कि मैं आचरण से अपराधी नहीं हूं। मजबूरी में अपराधी बना हूं। 2-4 गुर्जर परिवारों को छोडक़र किसी से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है और कोई भी मुझे बुरा इंसान नहीं कहता।
अपने भाई डकैत पप्पू के बारे जगन ने बताया कि उससे बात करूंगा, वो अभी मुझसे मिला नहीं है। मिलते ही उससे आत्म समर्पण के लिए बात करूंगा।
जगन गुर्जर का बड़ा बेटा आशाराम एक निजी स्कूल की 6 वीं कक्षा में पढ़ता है और वह बड़ा होकर पुलिस में भर्ती होना चाहता है। बेटे ने बताया कि पापा जेल से आ गए हैं, मैं बहुत खुश हूं। अब पापा को गैर कानूनी काम नहीं करने दूंगा और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए प्रेरित करूंगा।

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Web Title-Jagan wants to live a life of peace with family now Jagan Gurjar
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