इलाहाबाद। इलाहाबाद की हॉट सीट शहर उत्तरी पर हर्षवर्धन ने भगवा
लहरा दिया है। कांग्रेस के विधायक अनुग्रह नारायण सिंह को करारी शिकस्त देते हुये
हर्ष ने वह कर दिखाया जो बड़े बड़े शूरमा नहीं कर सके। इसके साथ ही हर्षवर्धन
वाजपेयी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में अपनी हार का बदला भी अनुग्रह से चुकता कर
लिया। लेकिन अनुग्रह की हार सपा-कांग्रेस गठबंधन को पच नहीं रही है। क्योकि
अनुग्रह लगभग 35 हजार वोट से हारे जो एक तरफा नजर आ रहा है। हर्ष बाजपेयी ने
शहर उत्तरी से बतौर भाजपा प्रत्याशी 89191 वोट के साथ विजय श्री हासिल की।
जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्यशी अनुग्रह नारायण सिंह 54166 वोट पर ही सिमट गये।
जबकि पिछले चुनाव में हर्षवर्धन के सहारे दूसरे स्थान पर रही बसपा तीसरे स्थान पर
खिसक गई । बसपा प्रत्याशी अमित गोस्वामी मात्र 23388 पर ही सिमट गये। [ अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
हर्ष से मजबूत होकर भी हारे अनुग्रह
पूरे सूबे में जब सपा-कांग्रेस गठबंधन नहीं हुआ था उस दरमियान
इलाहाबाद की सबसे वीआईपी सीट शहर उत्तरी पर सबसे मजबूत प्रत्याशी कांग्रेस
के विधायक अनुग्रह नारायण सिंह थे और यह सीट लगभग कांग्रेस के खाते में जाना तय
मानी जा रही थी। यही कारण था कि सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद तमाम सीटों पर दोनों
दलों से दावेदारी को लेकर रार मची । लेकिन शहर उत्तरी पर अनुग्रह के आगे कोई भी
आवाज नहीं आई। इसका कारण भी स्पष्ट था । चार बार विधायक रह चुके अनुग्रह पिछले दो
पंचवर्षीय से लगातार जीत दर्ज कर रहे थे और इस बार हैट्रिक पूरी होनी थी। पिछले
विधानसभा में बसपा कै हर्षवर्धन बाजपेई व भाजपा के बाहुबली उदयभान समेत सपा
के शशांक त्रिपाठी को धूल चटाने वाले अनुग्रह ने इस विधान सभा सीट में खुद की इमेज
जमीनी नेता की बना रखी है। जिसकी छवि साफ सुथरी और ईमानदार है। सपा से गठबंधन के
बाद से अनुग्रह ने इस सीट एक अभेद्य किला बना रखा था। जिसे भेद पाना नामुमकिन सा
नजर आ रहा था। लेकिन भाजपा के यूपी अध्यक्ष केशव के पार्थ कहे जाने वाले हर्षवर्धन
बाजपेई ने असंभव को संभव कर दिखाया और सपा-कांग्रेस गठबंधन के सबसे मजबूत किले को
किसी जर्जर दीवार की तरह ढहा दिया।
माकूल आंकड़े फिर भी लहर का असर
विधायक अनुग्रह नारायण सिंह जातीय आंकड़े में भी फिट बैठते हैं ।
सबसे ज्यादा करीब 1.10 लाख कायस्थ हैं और अनुग्रह इस बिरादरी के बेहद नजदीकी
हैं । सपा ही 10 हजार के लगभग ब्राह्मण मतदाता हैं। 60 हजार के करीब दलित, 50 हजार
बनिया, 25 हजार मुस्लिम, 20 हजार पिछड़ी जाति, करीब सात हजार बंगाली और लगभग पांच
हजार पंजाबी मत हैं। अनुग्रह ने यहां काफी काम किया था। इसलिये भी वह मजबूत थे।
लेकिन माकूल आंकड़े बिखर गये और हर्ष का कैरियर संवर गया।
सपाइयों ने झोंकी थी ताकत
शहर उत्तरी में कांग्रेस के अलावा सपाइयों ने भी अपनी ताकत झोक दी थी। कारण था इस
विधान सभा क्षेत्र में सपा के दिग्गजों का स्थायी रूप से रहना। सपा के राज्यसभा
सांसद रेवती रमण सिंह, पूर्व सांसद धर्मराज सिंह पटेल, मेजा के विधायक गामा
पांडेय, प्रतापपुर की विधयक विजमा यादव, पूर्व विधायक डॉ. बृजभान यादव, राधेश्याम
पटेल, सपा के जिलाध्यक्ष कृष्णमूर्ति यादव के साथ कई पूर्व जिलाध्यक्ष, सपा के
प्रांतीय कार्यकारिणी के कई सदस्य व पदाधिकारी शहर उत्तरी में रहते हैं। ऐसे में
इन सब की साख इस बार गठबंधन के चलते कांग्रेस से जुड़ी थी। लेकिन मोदी लहर के
आगे सबकुछ बेबस नजर आया।
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