प्रतापगढ़। देशभर में होली का पर्व हर्षोलास से मनाया जा रहा है। होली पर लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर आपसी मतभेद को भूलकर एक दूसरे को गले लगाकर बधाइयां देते देख सकते हैं। लेकिन राजस्थान में एक ऐसा शहर भी है, जहां लोग होली के दिन शोक मनाते हैं और गम में डूबे रहते हैं। यहां पर कोई एक दूसरे को रंग और गुलाल नहीं लगाता। रंगों के त्यौहार होली पर यहां सन्नाटा पसरा रहता है। प्रतापगढ़ में होली जलाने के बाद दूसरे दिन धुलण्डी पर लोग ना तो एक दूसरे को रंग लगाते हैं। ना ही फाग के गीतों की मस्ती यहां नजर आती है। नजर आता है तो सिर्फ सन्नाटा। यहां के बाजारों में सामान्य चहल पहल रहती है। प्रदेश में प्रतापगढ़ एक ऐसा इलाका है जहां ये सब नहीं होता है। प्रतापगढ़ और आस पास के ग्रामीण इलाकों में लोग होलिका दहन तो करते हैं, लेकिन दूसरे दिन धुलंडी का पर्व नहीं मनाते हैं। कभी यहां पर भी रंगों का यह त्यौहार बड़े उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता था। लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब दो सौ साल पहले रियासत कालीन दौर में जब प्रतापगढ़ भी एक रिसासत थी, यहां राजपरिवार में होली पर किसी की मौत हो गई थी तो तभी से यहां पर होली नहीं खेली जाती है। स्थानीय लोग आज भी होली से बारह दिनों तक उस घटना को शोक मनाते हैं और रंग व गुलाल नहीं लगाते हैं। हिंदू संस्कृति में परिवार के किसी सदस्य की मौत होने पर बारह दिनों तक शोक रहता है, कोई खुशी का कार्यक्रम नहीं होता है और 13 वें दिन उस शोक का निवारण किया जाता है। उसी प्रकार राजपरिवार में हुई उस घटना के 13 वें दिन यहां पर रंग तेरस का पर्व मनाया जाता है। लोग यहां तेरस को होली पर्व के रूप में मनाते हैं और एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते है। सरकार की और से भी उस दिन जिला कलेक्टर द्वारा सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की जाती है और ये परम्परा वर्षों से चली आ रही है।
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