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जोधपुर। रंगीले राजस्थान की होली का अनोखा अंदाज और इसकी परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, रंगों के त्यौहार इस रंगीले राजस्थान जोधपुर में अब फाग के रंगों के साथ होली की गैर निकलनी शुरू हो गई है। 7 रंगों के त्योहार के नजदीक आते ही मारवाड़ में होली की रंगत परवान चढऩे लगी है। चंग की थाप रात के बजाय अब दिन भी सुनाई दे रही है। गैरिए दिन में चंग व झींझा बजाते हुए कर्णप्रिय फागण गीत गा रहे हैं।
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मारवाड़ी वेशभूषा पहनकर बाजार में जब कुछ टोलिया चंग की थाप के साथ गाने लगती हैं, तब देखने व सुनने वाले लोग भी रोमांचित हुए बिना नहीं रहते। वाकई होली का त्यौहार है ही ऐसा कि फागण गीतों की मस्ती से हर कोई सराबोर हो ही जाता है। इन दिनों जोधपुर के पावटा, महामंदिर, मंडोर सहित कई क्षेत्रों में अलग-अलग गैरों के कार्यक्रम हो रहे हैं। होली के अगले दिन मंडोर क्षेत्र में होने वाले रावजी की गैर के बड़े आयोजन को लेकर कई गैरें अभी से तैयारियों में जुटी हुई हैं। अच्छे प्रदर्शन के लिए अभ्यास किए जा रहे हैं। लोगों पर अनूठी छाप छोडऩे के लिए गैरियों के लिए आकर्षक वेशभूषाएं भी तैयार की जा रही हैं।
यहां गैर का नृत्य भी होता है
जोधपुर, पाली पश्चिमी राजस्थान में फाल्गुन का पखवाड़ा लगने के साथ ही राजस्थानी फागण, राजस्थानी होली गीत, मारवाड़ी होली गीत, मारवाड़ी फागण, फागुन गीत के साथ ही देहाती इलाकों में होली का गैर नृत्य और फाग गीत की शुरुआत हो जाती है। फागुन के गीत यहां मर्यादाओं को लांघ जाते हैं। सभ्य समाज को होली का माहौल होने के कारण इसे स्वीकार करना पड़ताहै। राजस्थान में यह नृत्य डंका पंचमी से भी शुरू होता है। पुरे फागुन माह में रातभर चंग के साथ होली के गीत गाए जाते हैं।
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