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जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास टोंक रोड पर चंदलाई लेक और बरखेड़ा क्षेत्र में कई दुर्लभ पक्षियों का आशियाना बनता जा रहा है। अब तक 236 प्रजातियों के पक्षियों के इस इलाके में आने की पुष्टि हुई है।
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पक्षी प्रेमी और छायाकार केएल मीना ने यह खुलासा करते हुए बताया कि इन पक्षियों में फ्लैमिंगो, ग्रे हैडेड लैपविंग, बार हैडेड गीत्र, कॉमन शैलडक, सफेद, काले और नारंगी रंग के रफ, कुरजां, आइबिस, कॉमन पोचर्ड, रैड क्रेस्टेड पोचर्ड और पेलीकन शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में सबसे पहले वर्ष 2006 में उनकी नजर फ्लैमिंगो पक्षी पर पड़ी जो 400-500 की संख्या में गुजरात के कच्छ के रन से यहां आए थे। उस समय वहां इस क्षेत्र में गंदे पानी को खूबसूरत दिखाने की थीम पर फोटोग्राफी कर रहे थे।
गौरतलब है कि चंदलाई लेक में जयपुर शहर का गंदा और सीवेज का पानी जाता है और गंदे पानी में पनपने वाले कीड़े-मकोड़े कई पक्षियों के भोजन का जरिया बनते हैं, जिसकी वजह से देश-विदेश के पक्षी भारत में प्रवेश करने के बाद यहां भी आने लगे हैं। साथ ही आस-पास की हरियाली भी पक्षियों के यहां आने का कारण बन रही है। उन्होंने कहा कि वैसे तो पूरे साल ही इस इलाके में पक्षियों का डेरा रहता है पर खास तौर पर अगस्त से फरवरी तक 36 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों से गुलजार रहता है। बलूचिस्तान से ग्रे हैडेड लैपङ्क्षवग भी इसी दौरान यहां आती हैं। उत्तर पूर्व से कॉमन पोचर्ड, रैड क्रेस्टेड पोचर्ड, पेलीकन और ग्रेट व्हाइट डालमेशियन भी यहां अपना डेरा जमाते हैं। वर्ष 2010 में वेरियेबल व्हीटीयर की तीन प्रकार की प्रजातियां भी यहां देखने को मिली।
मीना ने बताया कि जब वे और उनके साथी यहां फोटोग्राफी कर रहे थे तो उन्होंने कुछ शिकारियों को पक्षियों का शिकार करते देखा। प्रकृति प्रेमी होने के नाते इससे उन्होंने काफी पीड़ा महसूस की। ग्रामीणों ने भी उन्हें पक्षियों के शिकार को रोकने की गुहार लगाई। इस पर कुछ पर्यावरण प्रेमी उनके समर्थन में खड़े हो गए। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2007 की इस घटना के बाद चंदलाई लेक और बरखेड़ा आने वाले पक्षियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
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