बता दे, जयदेव ने 13 दिसंबर, 2011 को बनी, इस वसीयत को चुनौती देने
वाली याचिका नवम्बर 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद दायर की थी। इस
वसीयत के मुताबिक जयदेव को कुछ भी नहीं दिया गया। जयदेव ने वसीयत को गलत
बताते हुए कहा था कि उनके पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और भाई उद्धव
ठाकरे का उन पर प्रभाव था। जयदेव के अलावा बाल ठाकरे ने अपने तीसरे बेटे
बिंदुमहादेव ठाकरे या उनके परिवार के नाम कुछ नहीं छोड़ा। बिंदुमहादेव की
एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। बाल ठाकरे ने इस वसीयत में अपनी संपत्ति
का अधिकांश हिस्सा उद्धव ठाकरे के नाम कर दिया था। ये भी पढ़ें - क्या आपकी लव लाइफ से खुशी काफूर हो चुकी है...!
उद्धव ही अब शिवसेना और
अपने परिवार के मुखिया हैं। इस वसीयत के अनुसार उपनगरीय बांद्रा इलाके में
बने तीन मंजिला मातोश्री बंगले के पहले तल के अलावा सभी संपत्तियां उद्धव
और उनके निकटतम परिजनों को दी जाएंगी। पहला तल जयदेव और उनकी तलाकशुदा
पत्नी स्मिता के पुत्र ऐश्वर्य को दिया गया है।
जनवरी 2013 में उद्वव ठाकरे
ने अपने पिता की वसीयत प्रमाणपत्र जारी करने संबंधी याचिका हाईकोर्ट में
दायर की थी। वसीयत प्रमाणपत्र याचिका किसी समुचित अधिकार प्राप्त अदालत से
मृत व्यक्ति की वसीयत पाने के लिए दायर की जाती है। वसीयत प्रमाणपत्र को
कोर्ट की मुहर लगाकर जारी किया जाता है और इसमें वसीयत की प्रति संलग्न
होती है।
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