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कलाकारों ने साकार की नाहर नृत्य की प्राचीन परम्परा

भीलवाड़ा। चार सौ चार वर्ष पुरानी नाहर नृत्य की परंपरा आज भी जिले के माण्डल कस्बें में कलाकारों ने जिंदा रखी हुई है। नाहर नृत्य को देखने के लिए देश भर के लोग यहां जुटते हैं। रंगतेरस के पावन पर्व पर वर्षों पुराने नाहर नृत्य का भव्य आयोजन किया गया। इस दौरान सफेद रूई में लिपटकर नाहर बने नर्तकों ने पहले तो बड़ा मंदिर चौक स्थित शेष सहाय धाम मठ मन्दिर में आकर्षक नृत्य किया उसके बाद उन्होनें दशहरा चौक में ग्रामीणों का भरपूर मनोरंजन किया। इस दौरान बज रहे मधुर वाद्ययंत्रों की धुन पर दर्शक झुम उठे। नाहर नृत्य की यह परम्परा लगातार उस जमाने से चली आ रही है, जब शाहजहां मेवाड़़ से दिल्ली जाते समय माण्डल तालाब की पाल पर रूकेते थे।
राजस्थान लोक कला केन्द्र के अध्यक्ष रमेश बुलिया का कहना है, नाहर नृत्य करने वाले अधिकांश लोग उसी खानदान से हैं जिन्होनें शाहजहां के समक्ष पहली बार यह नृत्य पेश किया था। आज भी इसी परिवार के लोग अपने पूर्वजों की परम्परा को कायम रखे हुए हैं।
नाहर नृत्य वाला दिन माण्डल कस्बे के लिए किसी दीपावली से कम नहीं होता। वजह है कि इस दिन घर-घर में एक से बढक़र एक मिठाईयां और खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं। इसको देखने के लिए सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों से पर्यटक माण्डल कस्बे में आते हैं।

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Web Title-Artists of ancient tradition of Naakar dance of Sakar
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