नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण ने गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। बढते प्रदूषण के कारण लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। ऐसे में प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कृत्रिम बरसात करने की तैयारी शुरू कर दी है। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा का कहना है कि अगर प्रदूषण की वजह से स्थिति और भी ज्यादा खराब हुई और एयर क्वालिटी मार्क 500 से ऊपर जाता है तो कृत्रिम बरसात की जाएगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
बता दे, कृत्रिम बारिश करना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसके लिए पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं, फिर सिल्वर आयोडाइड को रॉकेट या प्लेन के जरिए बादलों में मिला दिया जाता है। सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ की तरह ही होती है, इसकी वजह से बादलों का पानी भारी हो जाता है और बरसात हो जाती है।
यह प्रक्रिया बीते 50 सालों से उपयोग में लाई जा रही है। इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। क्लाउड सीडिंग का सबसे पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में बाथुस्र्ट, ऑस्ट्रेलिया में हुआ था। इसे जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा किया गया था।
अमेरिका में इस प्रक्रिया का प्रयोग 60 और 70 के दशक में कई बार किया गया लेकिन बाद में इसकी तरफ लोगों के रुझान में कमी आ गई। इसका मूल रूप से प्रयोग सूखे की समस्या से बचने के लिए किया जाता था। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि कृत्रिम बारिश का प्रयोग प्रदूषण में कमी लाने के लिए किया जा रहा हो। इससे पहले चीन ने भी इस विधि का प्रयोग प्रदूषण को कम करने के लिए किया है।
वहीं बीजिंग ओलंपिक के दौरान साल 2008-2009 में चीन ने इस विधि का प्रयोग 21 मिसाइलों के जरिए किया था। जिससे बारिश के खतरे को टाल सकें। हालांकि हाल ही में चीन की ओर से ऐसा कोई खबर नहीं आई जिससे जाहिर हो कि वह अब भी इस विधि का प्रयोग प्रदूषण से निपटने के लिए करता है।
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