हिमांशु तिवारी ,कानपुर। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत पर विपक्ष ईवीएम पर ठीकरा फोड़ रहा है। लेकिन पार्टी अध्यक्ष के 10 अक्टूबर की कानपुर धम्म सभा के संबोधन को कोई गौर नहीं कर रहा है। जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि मैने यूपी की राजनीति का अध्ययन किया है और सपा बसपा की तोड़निकाल लिया है।
भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में परिवर्तन यात्रा के पहले बौद्ध धर्म गुरूओं की सहायता से धर्म चेतना यात्रा निकाली थी। जिसका समापन 10 अक्टूबर
2016 को कानपुर में हुआ था। यात्रा समापन पर बतौर मुख्य अतिथि पार्टी अध्यक्ष
अमित शाह भी वीरेन्द्र स्वरूप पार्क पर भाग लिया।
इसी दौरान शाह ने अपने संबोधन में यूपी के जीत का प्लान उजागर किया था। जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि अब भाजपा उन दिनों की नहीं रही जब एक या दो वर्ग तक ही सीमित रहती थी। संख्या के आधार पर सभी की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। सोशल
इंजीनियरिंग की इस बात को उस समय न तो सत्ताधारी पार्टी सपा ने गंभीरता से
लिया न ही कांग्रेस व बसपा ने। लेकिन जब पार्टी की अभूतपूर्व जीत हुई तो सभी
ईवीएम पर भड़ास निकाल रहें है।
क्षेत्रीय अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह ने बताया कि पार्टी सबका साथ सबका विकास नीति पर लगातार आगे बढ़ रही है। जो लोग दिखावे के लिए सोशल इंजीनियरिंग की बात करते थे उनको अब समझ में आ गया है। सभी वर्ग को अब भाजपा पर विश्वास हो गया है और पार्टी बराबर बेहतर प्रदर्शन करती रहेगी।
यह थे बोल
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि जब लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश प्रभारी बनकर आया तो
सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की सफलता पर अध्ययन किया। जिसमें पता चला कि
बौद्ध गुरूओं ने इसमें महती भूमिका अदा की। इसके बाद सपा की सफलता पर देखा कि
ओबीसी की काफी हद तक कुर्मी बिरादरी को छोड़ सभी जातियां मुलायम के साथ हैं।
इसी के चलते सबसे पहले बौद्ध गुरूओं से संपर्क किया और वह पार्टी की नीतियों
से खुश होकर अपना समर्थन दिया। यही नहीं दलित विरादरी में गैर जाटव को संगठन
में जगह दी गई और सामाजिक समरसता के जरिये उन्हे तेजी से जोड़ा गया। ऐसे ही
ओबीसी के गैर यादव को संगठन में जोड़ा गया और संख्या के अनुसार उन्हे टिकट देने
का आश्वासन दिया गया।
60 जिलाध्यक्ष ओबीसी व एससी
अमित शाह ने बताया था कि उत्तर प्रदेश पार्टी ईकाई में 92 जिलाध्यक्ष होते
हैं। जिनमें पहली बार 60 जिलाध्यक्ष ओबीसी व एससी के बनाये गये हैं। जो अब तक
किसी भी राजनीतिक पार्टी ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है।
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