नई दिल्ली । आम आदमी अब
महंगाई की मार और समग्र आर्थिक मंदी महसूस कर रहा है। आईएएनएस-सीवोटर
सर्वेक्षण के अनुसार, कुल 65.8 फीसदी उत्तरदाता मानते हैं कि वे हाल के
दिनों में अपने दैनिक खर्चो के प्रबंधन में कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण के अनुसार, बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में
आर्थिक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं।
क्योंकि वेतन में वृद्धि नहीं हो रही, जबकि खाद्य पदार्थो सहित आवश्यक
वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं। गौरतलब है कि पिछले साल
जारी हुई बेरोजगारी दर 45 सालों की ऊंचाई पर है।
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दिलचस्प बात यह है
कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पर भी लगभग
65.9 फीसदी लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चो का प्रबंधन करने में असमर्थ
हैं।
हालांकि 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। साल 2015
में लगभग 46.1 फीसदी लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चो का
प्रबंध करने के लिए दबाव महसूस कर रहे हैं।
चिंताजनक बात यह है कि
चालू वर्ष के लिए लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण में काफी वृद्धि देखी जा
रही है। इससे पता चलता है कि लोग 2020 में अपने जीवन की गुणवत्ता में कोई
सुधार नहीं देख रहे हैं, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की संभावना
और हालात में सुधार को लेकर नकारात्मक बने हुए हैं।
सर्वेक्षण में
भाग लेने वाले 30 फीसदी उत्तरदाताओं (लोगों) को लगता है कि खर्च बढ़ गया
है, मगर फिर भी वे प्रबंधन कर पा रहे हैं। यह संख्या 2019 की तुलना में
बड़ी गिरावट है, जब 45 फीसदी से अधिक लोगों ने महसूस किया था कि वे खर्च
बढ़ने के बावजूद प्रबंधन करने में सक्षम हैं।
इसके अलावा 2.1 फीसदी
लोगों ने माना कि उनके व्यय में गिरावट आई है। जबकि इतने ही लोगों ने इस
संबंध में कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की।
आधिकारिक आंकड़ों के
अनुसार, खाद्य कीमतों में बड़े पैमाने पर वृद्धि के कारण दिसंबर में खुदरा
महंगाई दर 65 महीनों में 7.35 फीसदी के उच्च स्तर को छू गई।
सर्वे
में शामिल 4,292 लोगों में से 43.7 फीसदी लोगों ने एक प्रश्न के जवाब में
बताया कि उनकी आय एक समान रही और व्यय बढ़ गया, जबकि अन्य 28.7 फीसदी लोगों
ने यहां तक कहा कि उनके व्यय तो बढ़े ही हैं, मगर साथ ही उनकी आय में भी
गिरावट आई है।
यह सर्वेक्षण एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय बजट
से पहले सरकार की आंखें खोलने का काम कर रहा है। सर्वेक्षण जनवरी 2020 के
तीसरे और चौथे सप्ताह में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 11
राष्ट्रीय भाषाओं में किया गया है। (आईएएनएस)
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