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तृणमूल और आई-पैक का रिश्ता टूटने की ओर?

Trinamool and I-PAC ties to break? - Kolkata News in Hindi

कोलकाता । तृणमूल कांग्रेस ने अभी तक आई-पैक से नाता नहीं तोड़ा है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आई-पैक के बीच मतभेद गहरा गया है। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने आई-पैक की टीम को चुनाव प्रबंधन जम्मा सौंपा था। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस हद तक पहुंच गए हैं कि पार्टी का आई-पैक से रिश्ता टूटना बस कुछ ही समय की बात है।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की हार के बाद किशोर को ममता बनर्जी से अभिषेक बनर्जी ने मिलवाया और आई-पैक ने पार्टी के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाली। ममता बनर्जी सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने खुले तौर पर कहा कि आई-पैक को पार्टी के आंतरिक निर्णय लेने का हक नहीं है, इससे स्पष्ट है कि चुनाव प्रबंधन समूह एक या दो व्यक्तियों की ओर से काम कर रहा था।

पार्टी के नेताओं का कहना है कि आई-पैक के पार्टी में प्रवेश ने न केवल इसे एक पेशेवर आकार दिया, बल्कि इसने जन समर्थन को वापस लाने में भी अद्भुत काम किया। 'दीदी के बोलो' (दीदी को बताओ) या 'ममता आमादेर घोरेर मेये' (ममता हमारे घर की बेटी हैं) जैसे अभियानों ने न केवल मतदाताओं का विश्वास जगाने में मदद की, बल्कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए ममता बनर्जी के 'बाहरी' सिद्धांत को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया। उनके लिए बाहरी का मतलब था नरेंद्र मोदी, अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेताओं का चुनाव के दौरान अक्सर दौरा करना।

समस्या तब शुरू हुई, जब पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी और अखिल भारतीय उपाध्यक्ष सुब्रत बख्शी सहित पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के आंतरिक फैसलों में उनके हस्तक्षेप की शिकायत करना शुरू कर दिया। कुछ नेताओं ने तो यह धमकी भी दी कि अगर आई-पैक ने पार्टी के आंतरिक फैसलों और सरकार के काम में दखल देना बंद नहीं किया, तो वे काम करना बंद कर देंगे।

वरिष्ठ नेताओं ने ममता बनर्जी से शिकायत की कि आई-पैक के वरिष्ठ सदस्य पार्टी नेतृत्व में शामिल अन्य किसी के निर्देश को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं और वे केवल ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी की सुनते हैं।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "यह न केवल अपमानजनक है, बल्कि पार्टी नेतृत्व के साथ इस तरह से व्यवहार किया गया कि हमें कोई भी राजनीतिक या प्रशासनिक निर्णय लेने से पहले आई-पैक की मंजूरी लेनी पड़ती है। यह स्वीकार्य नहीं है। हम पार्टी और ममता बनर्जी के प्रति वफादार हो सकते हैं, लेकिन किसी और के प्रति नहीं।"

ऐसी भी शिकायतें थीं कि कई मामलों में आई-पैक के वरिष्ठों के साथ समझौता किया गया और उन्होंने मूल्यांकन के आधार पर नहीं बल्कि 'कुछ अन्य कारकों' के आधार पर स्थानीय नेताओं को वरीयता दी।

नेता ने कहा, "पेशेवर समूह द्वारा सुझाए गए कुछ नाम हैं, जिनके पास पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई साख या पृष्ठभूमि नहीं है। यह समझ में नहीं आता कि उन्हें क्यों चुना गया।"

आई-पैक टीम और मुख्यमंत्री के बीच दरार तब स्पष्ट हो गई, जब आई-पैक प्रमुख प्रशांत किशोर ने टीएमसी सुप्रीमो से कहा कि वह पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस के साथ अब काम नहीं करना चाहते। जवाब में ममता ने सिर्फ रूखा सा 'धन्यवाद' कहा। उधर मेघालय ने स्पष्ट कर दिया कि तृणमूल सुप्रीमो पार्टी के संचालन पर आई-पैक के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं।

एक ताजा घटना में डायमंड हार्बर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के तहत दो नगर पालिकाओं - डायमंड हार्बर नगर पालिका और बज बज नगर पालिका में उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया, जिन्हें तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो द्वारा नियुक्त दो डिप्टी ने मंजूरी नहीं दी। इसके बाद से पार्टी पर तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष का नियंत्रण संदेह के घेरे में है।

दिलचस्प बात यह है कि दोनों नगर पालिकाएं डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं जहां के सांसद मुख्यमंत्री के भतीजे और पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी हैं। इतना ही नहीं, दक्षिण 24 परगना राज्य के समन्वयक अरूप बिस्वास को मुख्यमंत्री ने खुद नामित किया था, उनकी जगह अचानक पार्टी के दो कार्यकर्ता - कुणाल घोष और सौकत मुल्ला को ले लिया गया, जो अभिषेक बनर्जी के करीबी माने जाते हैं।

उम्मीदवारों की सूची को मुख्यमंत्री ने अनुमोदित किया था, टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुब्रत बख्शी ने इसे से जारी किया था। इसे पार्टी के फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल पर भी अपलोड किया गया था। हालांकि इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि सूची को अपलोड करने के लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन कई पार्टी नेताओं का मानना है कि इसके पीछे आई-पैक का हाथ है।

ममता बनर्जी ने कहा था कि चटर्जी और बख्शी ने जो सूची तैयार की है, उसका पालन नहीं किया गया तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तृणमूल प्रमुख इस स्थिति में क्या प्रतिक्रिया देती हैं, जब उनके करीबी ही उनके खिलाफ काम कर रहे हैं। (आईएएनएस)

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