कोलकाता। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए संघर्ष करते हुए अपना जीवन बिताने वाले एक वृद्ध कार्यकर्ता के लिए सरकार की कल्याणकारी योजनाएं एक खोखली आशा बन कर रह गई हैं। 63 वर्षीय वासुदेव बनर्जी, जो पूर्वी मेदिनीपुर जिले के पाकुरिया गांव में रहते हैं, आज भी एक टूटे-फूटे मिट्टी के घर में अपनी पत्नी के साथ जीवन बिता रहे हैं। उनका घर इतना जर्जर हो चुका है कि बारिश का पानी अंदर घुस आता है, और उनकी छत भी बांस से बनी मिट्टी की है जो किसी भी समय गिर सकती है।वासुदेव ने तृणमूल कांग्रेस के गठन से पहले भी पार्टी के लिए संघर्ष किया था और वाममोर्चा के खिलाफ चुनाव लड़ा था, भले ही वे हार गए। पार्टी की ओर से उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां भी मिलीं, लेकिन वे हमेशा तृणमूल के साथ खड़े रहे। इसके बावजूद, वे आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। उन्हें न तो बंगाल आवास योजना का लाभ मिला और न ही वृद्धावस्था भत्ता, जबकि वे पार्टी के जन्म से ही इसके समर्थन में हैं।वासुदेव का कहना है कि वे और उनकी पत्नी अपने जीवन के अंतिम समय में एक टूटी-फूटी कच्ची झोपड़ी में रह रहे हैं। उनके पास न तो पक्का घर बनाने के पैसे हैं और न ही कोई नियमित आय का साधन। उनके द्वारा किए गए आवेदन, चाहे वह सरकारी दफ्तरों में हों या डीएम कार्यालय में, सभी व्यर्थ साबित हुए। उनकी दो बेटियों की शादी भी कर्ज पर की गई थी, जो आज भी उनके सिर पर बोझ की तरह है।यह स्थिति उन लोगों के लिए एक गंभीर सवाल खड़ा करती है जो वर्षों तक सत्ता में रहने वाले दलों के लिए काम करते हैं, लेकिन उनके लिए सरकार की योजनाएं और वादे सिर्फ हवा में उड़ते हैं। वासुदेव का यह दर्द सिर्फ उनका नहीं, बल्कि कई ऐसे कार्यकर्ताओं का है जो अपने संघर्षों के बावजूद बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
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