भारत के उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने हाल ही में बेंगलुरु में एक कार्यक्रम के दौरान वैवाहिक विवादों के बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि देशभर में वैवाहिक विवादों की बढ़ती संख्या न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ डाल रही है। न्यायमूर्ति नागरत्ना का यह कथन वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की सटीक तस्वीर पेश करता है।
आज हमारे देश में वैवाहिक विवादों में चिंताजनक वृद्धि देखी जा रही है।
वैवाहिक विवादों के बढ़ते मामलों से न केवल न्यायालयों पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है, बल्कि परिवारों, विशेषकर बच्चों पर इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घरेलू हिंसा, दहेज, अत्याचार और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों से संबंधित याचिकाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह विडंबना ही है कि आज छोटी-छोटी बातों पर भी न्यायालयों का दरवाजा खटखटाया जा रहा है। मामूली असहमति भी बड़े विवादों में तब्दील हो रही है। देश में पारिवारिक न्यायालयों की संख्या अपर्याप्त है, जिससे इन पर अत्यधिक दबाव है। विवादों के प्रभावी समाधान के लिए पूर्व-वाद निपटान और मध्यस्थता जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
वर्ष 2022 में भी उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि वैवाहिक संस्था के प्रति नाखुशी और कटुता बढ़ रही है। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि पति और उसके रिश्तेदारों से हिसाब चुकता करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग बढ़ रहा है। धारा 498-ए ससुराल में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री के उत्पीड़न से संबंधित है, और इसका दुरुपयोग चिंता का विषय है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना बेंगलुरु में सुप्रीम कोर्ट की फैमिली कोर्ट्स कमेटी द्वारा आयोजित दक्षिणी क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं, जिसका विषय था "परिवार: भारतीय समाज का आधार"। यह दुखद है कि आज वैवाहिक विवाद इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि पति-पत्नी के बीच समझौते की संभावनाएं लगभग समाप्त हो गई हैं। एक ही मामले में घरेलू हिंसा और गुजारा भत्ता जैसी कई याचिकाएं दायर की जाती हैं, जिसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि तलाक और वैवाहिक विवादों में वृद्धि के लिए महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता जिम्मेदार नहीं है। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि हुई है। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से भारतीय परिवारों की पारंपरिक संरचना तेजी से बदल रही है।
महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक मुक्ति स्वागत योग्य और आवश्यक है।
शिक्षा और रोजगार तक बढ़ती पहुंच के कारण महिलाएं सामाजिक-आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं, जो एक सकारात्मक बदलाव है। हालांकि, समाज इस बदलाव को स्वीकार करने में विफल रहा है, जिससे तलाक के मामलों में वृद्धि हुई है। इसका समाज, देश और न्यायपालिका पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है।
देश में मुकदमों की संख्या के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या कम है। न्याय में देरी भी अन्याय के समान है।
फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना और पारिवारिक न्यायालयों की संख्या में वृद्धि करना आवश्यक है। पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 के तहत, 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पारिवारिक न्यायालय स्थापित किए जाते हैं, जो विवाह और पारिवारिक मामलों से संबंधित विवादों का निपटारा करते हैं।
न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए ऑनलाइन प्रक्रियाएं और राष्ट्रीय लोक अदालत जैसे प्रयास किए गए हैं। हालांकि, देरी की समस्या अभी भी बनी हुई है।
मुकदमों का बोझ कम करने के लिए जन-जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
छोटे पारिवारिक विवादों को गांव और शहर स्तर पर पारिवारिक संगठनों और संस्थाओं द्वारा निपटाया जा सकता है। आपसी बातचीत, मध्यस्थता और परामर्श के माध्यम से परिवारों को जोड़ा जा सकता है। फैमिली रिलेशनशिप एडवाइस लाइन भी मददगार साबित हो सकती है।
महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्वतंत्रता को समाज द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि महिलाएं न केवल परिवारों के लिए, बल्कि राष्ट्र के लिए भी योगदान दे रही हैं। समाज को इस बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। दृष्टिकोण और व्यवहार को समय के अनुसार बदलना होगा।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बताया कि पिछले दशक में लगभग 40 प्रतिशत शादियां तलाक के कारण प्रभावित हुई हैं। भारतीय परिवारों और समाजों को अपना रवैया और व्यवहार बदलने की आवश्यकता है।
पारिवारिक अदालतों में वकील की उपस्थिति मशीनी नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे दोनों पक्ष अच्छी तरह से बातचीत कर सकें। यदि दोनों पक्ष एक-दूसरे को समझें, सम्मान करें और आत्मनिरीक्षण करें, तो तलाक के मामलों में कमी आ सकती है। इन सुझावों पर ध्यान देने से एक खुशहाल और समृद्ध समाज का निर्माण किया जा सकता है।
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