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मनुष्य के दुश्मन नहीं, हितकारी हैं समस्त पशु-पक्षी !

All animals and birds are not enemies of man, but are beneficial to him! - Pithoragarh News in Hindi

सोशल मीडिया, विशेषकर फेसबुक, कई बार सकारात्मक बदलाव और मानवीय संवेदनाओं को दर्शाने का एक सशक्त माध्यम बनता है। हाल ही में, राजस्थान के एक स्थानीय यू-ट्यूब कलाकार की एक फेसबुक पोस्ट ने लेखक को गहराई से प्रभावित किया। यह पोस्ट भीषण गर्मी में रेगिस्तान के बेसहारा पशुओं के प्रति करुणा का भाव दर्शाती है। रेगिस्तानी टीलों के बीच स्थित एक कुंड से, यह कलाकार एक आवारा गाय के बछड़े को पानी निकालकर पिला रहा था। उसकी मार्मिक अपील थी कि अन्य लोग भी इसी प्रकार बेसहारा पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए आगे आएं। हिन्दू धर्म में पानी पिलाना एक महान धर्म और परोपकार माना गया है। वास्तव में, भारतीय सनातन संस्कृति में परोपकार को दान और सेवा के रूप में उच्च स्थान दिया गया है। यह हमारे देश की प्राचीन परंपरा ही नहीं, बल्कि हम भारतीयों के जीवन का अभिन्न अंग है। धर्म, संस्कृति और समाज के हर पहलू में दान, सेवा और परोपकार का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हमारे यहां यह उक्ति प्रसिद्ध है: 'परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः। परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम्।।' अर्थात्, वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, नदियाँ दूसरों की प्यास बुझाने के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, और यह शरीर भी परोपकार के लिए ही बना है।
संत कबीर दास जी ने भी सरल शब्दों में कहा है, 'चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घटियो नीर। दान दिए धन न घटे, कह गए दास कबीर।' गर्मियों में जल संरक्षण का महत्व और भी बढ़ जाता है। हमें न केवल अपने लिए, बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। पहले के समय में रेगिस्तानी इलाकों में प्याऊ लगाई जाती थीं और खेतों में पशुओं के लिए पानी की खेली (छोटी कुंडियाँ) बनाई जाती थीं। लेखक ने फेसबुक पोस्ट में देखा कि दो प्यासे बछड़े पानी के कुंड के पास खड़े थे, पर वे स्वयं पानी नहीं पी पा रहे थे। पास में सीमेंट का एक बर्तन सूखा पड़ा था।
उस स्थानीय कलाकार ने बाल्टी से पानी निकालकर उन बेजुबानों की प्यास बुझाई। अभी तो अप्रैल का महीना ही है, आने वाले समय में भीषण गर्मी पड़ने की पूरी संभावना है, खासकर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को देखते हुए। यह सही है कि आज भी कई धर्मार्थ संगठन और व्यक्ति पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं, लेकिन गर्मियों में हमें इन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। रेगिस्तानी और दूर-दराज के इलाकों में जहां पानी के कुंड उपलब्ध हैं, उन्हें भरकर रखना चाहिए और आवारा पशुओं के लिए पानी की खेली की व्यवस्था करनी चाहिए। पशु-पक्षी बोलकर अपनी भूख-प्यास व्यक्त नहीं कर सकते, इसलिए यह हम मनुष्यों का कर्तव्य है कि हम उनकी भावनाओं को समझें।
ये जीव हमारी खाद्य श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धरती का पर्यावरण और पारिस्थितिकी है, तभी हमारा अस्तित्व है। मनुष्य की तरह ही पशु और पक्षी भी सचेतन जीव हैं, जिनमें ममता, वात्सल्य और स्नेह होता है। उन्हें प्यार और स्नेह देने से हमें आत्मिक सुख मिलता है और यह हमारी मानवता का प्रतीक है। मनुष्य पशु-पक्षियों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता, क्योंकि वे पर्यावरण के संतुलन और स्वच्छता में सहायक होते हैं। पक्षी भोजन, औषधि, उर्वरक और मधुर गीत देते हैं, जिससे हमारा पर्यावरण समृद्ध होता है। वे कीटों को नष्ट करके जैव नियंत्रण में भी मदद करते हैं। यहां तक कि उनका सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व भी है।
हमारे शास्त्रों में भी मानव-पशु-पक्षी संबंधों का वर्णन मिलता है। हमें घायल या पीड़ित पशु-पक्षियों के लिए आश्रय, उपचार और भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए, खासकर गर्मियों में उनके लिए पानी का प्रबंध करना अत्यंत आवश्यक है। अंततः, मनुष्य और पशु एक-दूसरे पर न केवल निर्भर हैं, बल्कि पूरक भी हैं। दोनों का सह-अस्तित्व ही खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। हमें याद रखना चाहिए कि यदि जंगल से एक भी जीव लुप्त होता है, तो इसका प्रभाव पूरे पर्यावरण और हमारी पारिस्थितिकी पर पड़ना स्वाभाविक है। इसलिए, आइए हम सब मिलकर इन बेजुबान जीवों की देखभाल करें और परोपकार के इस महान कार्य में अपना योगदान दें।

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