असगर नकी ,सुल्तानपुर। डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के दिव्यांग और मेधावी छात्र मो अकरम का चयन हिंदी में शोध के लिए प्रवेश नियम कानून को ताख पर रखकर न करके आंशिक रूप से विकलांग का कर दिया गया था। चयन में प्रतिभा को नहीं पहुंच और पकड़ को प्राथमिकता दी गई। फिलहाल अकरम ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और साथ ही साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं होती और विषम से विषम परिस्थितियों में भी कीर्तमान स्थापित करने की क्षमता रखती हैं।
अकरम का जब परास्नातक का नतीजा आया तो उसने एमए हिंदी में अपने विश्वविद्यालय में सर्वोच्च अंक प्राप्त करके दो स्वर्ण व दो कांस्य पदक पाने का हकदार खुद को बना लिया।
परास्नातक हिन्दी में सर्वाधिक 80.20 प्रतिशत पाए से अंक
इस नतीजे ने जहां अकरम के लगन और परिश्रम के साथ ही उसके मेधावी होने को स्थापित किया।
वहीं विश्वविद्यालय के प्रवेश संबंधी कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए विश्वविद्यलय के हिंदी के शोध छात्र के रूप में प्रवेश की चयन प्रक्रिया पर पुनर्विचार की स्थिति भी उत्पन्न कर दिया है। विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्य्क्ष यशवंत सिंह ने बताया कि मो अकरम को परास्नातक हिन्दी में सर्वाधिक 80.20 प्रतिशत पाने पर एक स्वर्ण, कुलाधिपति का अलोक तोमर स्वर्ण पुरस्कार प्राप्त हुआ।
केंद्रीय मंत्री से लेकर सीएम करेंगे सम्मानित
अब मुख्यमंत्री का कांस्य व समस्त संकाय में सर्वाधिक अंक पाने पर एक उसे कांस्य पदक तीसरे दीक्षांत समारोह में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर व मुख्य मंत्री आदित्य नाथ योगी के हाथों मिलेगा।
ये सभी दिव्यांग मो अकरम को सम्मानित करेंगे।
अखिलेश सरकार में बेटे के साथ बरती गई अनिमितता: मां
अकरम के परिजनों में उसके मेधा को लेकर दिए जाने एवार्ड की ख़ुशी तो है लेकिन पिछली सरकार में हिन्दी में पीएचडी प्रवेश में किए गए अन्याय को वो भूल नहीं पा रहे हैं। अकरम की मां अजरुल निशा ने कहा कि मुस्लिमों की हितैशी बताने वाली अखिलेश सरकार में उनके मेधावी पुत्र के अनिमितता बरत कर अयोग्य छात्र का प्रवेश कर लिया गया।
योगी सरकार में उनके बेटे को की गई एवार्ड की घोषणा से विश्वास जग आया है। वहीं बहन शायमा ने कहा कि उसे पूरा विश्वास है कि मुख्यमंत्री योगी उसके दिव्यांग भाई को न्याय दिलाएंगे। जबकि भाई मो. आजम ने कहा कि उसके दिव्यांग भाई को कुलपति ने अपमानित कर भगा दिया था। आज उसी भाई ने अपनी प्रतिभा के बल पर सम्मान करने के लिए मजबूर कर दिया है।
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