आदिवासी राजा द्वारा इस पहाड़ी के कोने-कोने में सोना छिपाने की
वजह से ही इसे 'सोन पहाड़ी' कहा जाने लगा और तभी से 'सौ मन सोना,
कोना-कोना' की कहावत भी प्रचलित हुई।
आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने
वाले सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वर गोंड बताते हैं कि जब चंदेल शासक को राजा
बल शाह के खजाना समेत इस पहाड़ी में छिपे होने की सूचना मिली तो उसकी सेना
ने यहां भी धावा बोल दिया, लेकिन तब तक एक खोह (गुफा) में छिपे राजा बल
शाह को जंगली जानवर खा चुके थे और उनकी पत्नी रानी जुरही को चंदेल शासक ने
पकड़कर जुगैल गांव के जंगल में ले जाकर हत्या कर दी थी। जुगैल जंगल में आज
भी रानी जुरही के नाम का 'जुरही देवी मंदिर' मौजूद है।
गोंड बताते
हैं कि उसी दौरान खरवार जाति के एक व्यक्ति को राजा बल शाह का युद्ध कवच और
तलवार गुफा से मिली थी। तलवार तो किसी को बेच दी गई, लेकिन अब भी उनका कवच
एक खरवार व्यक्ति के घर में मौजूद है। माना जा रहा है कि राजा बल शाह का
खजाना आज भी सोन पहाड़ी में छिपा है।
स्थानीय पत्रकार और पर्यावरण
कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा बताते हैं कि आदिवासी राजा बल शाह के
अगोरी किला में अब चंदेलवंशी राजा के वंशज राजा आभूषण ब्रह्म शाह का कब्जा
है, जो सोनभद्र जिले के राजपुर में रहते हैं।
वह बताते हैं कि खजाने
के लालच में चरवाहों ने अगोरी किले को खुर्द-बुर्द कर दिया है। पुरातत्व
विभाग ने भी किले को संरक्षण में लेने की जरूरत नहीं समझी।
--आईएएनएस
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