सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल सोनभद्र जिले में भले ही भारी तादाद में खनिज संपदा हो, लेकिन पहले कभी यहां अकूत वन संपदा का भी भंडार था, जिसे बेचकर आदिवासी अपने परिवार की जीविका चलाते थे। मगर बढ़े प्रदूषण से कई बहुमूल्य जड़ी-बूटियां नष्ट हो गईं, जिससे आदिवासियों का आर्थिक ढांचा बिल्कुल चरमरा गया है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सोनभद्र जिले में बहुमूल्य धातुओं के साथ भारी तादाद में जड़ी-बूटियों का भी भंडार था, जो अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। इनके नष्ट होने के पीछे बढ़ रहे जल और वायु प्रदूषण को सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है। जिन सोन और हरदी पहाड़ी में करीब तीन हजार टन से ज्यादा स्वर्ण अयस्क होने की संभावना जताई जा रही है, उनमें अब भी सतावर, वन तुलसी, खतंती, खेखसा, सफेद मूसली, गुड़मार, चकवड़ जैसी जड़ी-बूटियों के अलावा आंवला, हर्र, बहेरा, चिरौंजी, पियार, बेल, शहद और बेर जैसी वन संपदा पाई जाती है।
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