प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, "हमें नहीं पता था कि वे लोग हथियारों-बंदूकों से
लैस होकर आए थे। उन्होंने जब फायरिंग शुरू की तो हम खुद को बचाने के लिए
इधर-उधर भागने लगे और पुलिस को सूचना दी। पुलिस एक घंटा बाद आई।"
ग्रामीणों
व गांव प्रधान के बीच विवाद 36 एकड़ जमीन को लेकर है। शुरुआती जांच में
पता चला है कि आदिवासी लोग पीढ़ियों से उस जमीन को जोतते आ रहे हैं, लेकिन
उनके पास इसके स्वामित्व का कोई सबूत नहीं है, जिसकी मांग वे दशकों से कर
रहे हैं। मुख्य आरोपी का दावा है कि उसने 10 साल पहले एक प्रमुख स्थानीय परिवार से वह जमीन खरीदी थी।
सन्
1955 में भूमि का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें गांव का भाग भी शामिल है, उसे एक
परिवार द्वारा बनाए गए एक कोऑपरेटिव सोसाइटी को स्थानांतरित कर दिया गया।
ऐसा एक सरकारी योजना के तहत किया गया। साल 1966 में इस योजना को समाप्त कर
दिया गया, लेकिन जमीन सरकार को वापस नहीं की गई।
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