शाहजहांपुर। जनपद के कई युवाओं का स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और
उनकी गौरव गाथाएं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं इन्हीं क्रांतिकारियों
में एक नाम है प्रेम किशन खन्ना का उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की चूल्हे
हिलाकर रख दी थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
29 नवंबर 1942 में ब्रिटिश सरकार ने देश में भूमिगत आंदोलन चलाने वाले जिन
17 नेताओं की सूची जारी की थी। उनमें प्रेम किशन खन्ना का भी नाम था। महात्मा
गांधी द्वारा छोड़े गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने के कुछ
समय बाद ही श्री खन्ना को दिल्ली में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था।
परंतु वह बीमार हो गए और इलाज के लिए ले जाने के दौरान 11 नवंबर 1942 को
पुलिस को चकमा देकर भाग गए थे।
जैसे ही यह खबर अंग्रेजों को लगी तो वह सतर्क हो गए और खन्ना जी विदेश जाने
की तैयारी में थे इसीलिए उन्हें रावलपिंडी में फिर गिरफ्तार कर लिया गया
तथा 11 नवंबर 1942 को ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचर विभाग मुंबई लखनऊ पटना
पुणे अधिकारियों को पत्र भेजकर प्रेम किशन खन्ना की तोड़-फोड़ कार्यवाही
के बारे में कई रहस्योद्घाटन किए थे।
प्रेम किशन खन्ना को रावलपिंडी में गिरफ्तारी के बाद उन्हें लाहौर फोर्ट
कारागार में रखा गया यह वही कारागार था जिसमें आक्रामक एवं तेजतर्रार
क्रांतिकारियों को रखा जाता था और उन्हें असहनीय क्रूरतम यातनाएं भी दी
जाती थी।
यही वह जेल थी जिसे क्रांतिकारी मन्मथ नाथ गुप्ता ने नरक की संज्ञा दी थी
इसी जेल में स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस के विशेषज्ञ और राबिसन की अगुवाई में
प्रेम किशन खन्ना को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गई उन्हें कड़ाके की
सर्दी में कई रातें बिस्तर नहीं दिए गए वह एेसे ही सर्दी में ठिठुरते रहे
यही नहीं उन्हें कड़ाके की सर्दी में वर्फ पर भी लिटाया गया तथा 3 दिन
उन्हें सोने नहीं दिया गया और 72 घंटे तक उन्हें लगातार आंखें खुले रहने पर
मजबूर किया गया।
एेसी यातनाएं झेलने के बाद भी प्रेम किशन खन्ना ने विध्वंसयकारियों में
शामिल क्रांतिकारियों के बारे में मुंह नहीं खोला इधर अंग्रेजों ने प्रेम
किशन खन्ना को बदनाम करने और स्वतंत्रता प्रेमियों को गुमराह करने की योजना
बनाते हुए काम करना शुरू कर दिया था।
इन्हीं प्रेम किशन खन्ना ने जनपद के जलालाबाद में काकोरी शहीद इंटर कॉलेज
की स्थापना कि आज उन्हीं के नाम पर राजकीय डिग्री कॉलेज भी संचालित हो रहा
है इनका जन्म 2 फरवरी 1894 को लाहौर में हुआ और 1979 से 1983 तक यह उत्तर
प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के अध्यक्ष भी रहे और 3 अगस्त
1993 को उनका स्वर्गवास हो गया।
आजादी की लड़ाई में यूं तो लाखों करोड़ों हिंदुस्तानियों ने भाग लिया लेकिन
कुछ ऐसे वीर सपूत थे जो इस आजादी की लड़ाई में राष्ट्र धर्म की खातिर
क्रांति की पहली गोली खाने वालों को भले ही तोपों से उड़ा दिया गया हो
लेकिन वह जो चिंगारी लगा कर गए थे उस चिंगारी ने हीं स्वाधीनता सेनानियों
ने अपने अहिंसक आंदोलन से अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
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