स्वास्थ्य सेवा से जुड़े एक अन्य पदाधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर
बताया, "उप्र की स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत की प्रमुख वजह यहां पर हो
रहे नए-नए प्रयोग हैं। अब मैनेजमेंट के तरीके से चिकित्सकों को चलाया जा
रहा है। पुराने चिकित्सकों से काम लेने की बात कही जा रही है। नया एमबीबीएस
तैयार होने के बाद बाहर की ओर रुख कर रहा है। पुराने लोग अनुभव में भले ही
अच्छे हैं, परंतु अब नई तकनीक आ गई है। इसमें नए लोग ज्यादा अच्छा काम कर
सकते हैं।"
प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग (पीएमएस) के पूर्व अध्यक्ष
अशोक यादव हालांकि नीति आयोग की रपट को सही नहीं मानते। उन्होंने कहा, "जो
रिपोर्ट आई है, उसमें घोषित सेवाओं में तकनीक का मूल्यांकन नहीं किया गया
है। महानिदेशक (शिक्षा चिकित्सा) की ओर से कहीं न कहीं कोई खामी रह गई
होगी, जिसका यह परिणाम है। जो भी जिम्मेदार लोग हैं, अगर समय रहते इस कमी
को बता देते तो शायद रिपोर्ट थोड़ी अच्छी हो जाती।"
राज्य सरकार
स्वास्थ्य की इस खस्ताहाली के लिए पूर्व की सरकारों को जिम्मेदार ठहरा रही
है। राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्घार्थ नाथ सिंह का कहना है कि
समस्याएं उन्हें विरासत में मिली हैं। उन्होंने कहा, "कुछ चीजें हमें
विरासत में मिली हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट 2017 की है। उस समय हमारी सरकार
बनी थी। थोड़ा समय लगेगा स्वास्थ्य व्यवस्थाएं ठीक हो जाएंगी।"
लेकिन
बसपा अध्यक्ष मायावती नीति राज्य की खराब सेहत के लिए मौजूदा राज्य सरकार
को जिम्मेदार मानती हैं। उन्होंने कहा है, "यह रिपोर्ट (नीति आयोग की)
सरकार को लज्जित करने वाली है कि जन स्वास्थ्य के मामले में उत्तर प्रदेश
देश का सबसे पिछड़ा राज्य है, जबकि केंद्र व उप्र में भाजपा की सरकारें
हैं। ऐसी डबल इंजन वाली सरकार का क्या लाभ है?"
उल्लेखनीय है कि
नीति आयोग की 'स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में 21
बड़े राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे 21वें पायदान पर है। और
केरल इस सूची में शीर्ष पर है।
(आईएएनएस)
लोकसभा चुनाव 2024 : देश की 102 सीटों पर छिटपुट घटनाओं को छोड़ शांतिपूर्ण रहा मतदान
लोकसभा चुनाव 2024: देश की 102 सीटों पर कुल 59.71% मतदान दर्ज
Election 2024 : सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल और सबसे कम बिहार में मतदान
Daily Horoscope