योगी आदित्यनाथ की सरकार जब राज्य में सत्ता में आई थी, तब सरकारी
अस्पतालों में 7,000 डॉक्टरों की कमी थी। सरकार का कहना है कि उसने अबतक
2532 नए डॉक्टरों की नियुक्तियां की, लेकिन अभी भी लगभग पांच हजार डॉक्टरों
की कमी है।
सरकारी अस्पतालों में मौजूद डॉक्टरों की संख्या के लिहाज से राज्य में प्रति डॉक्टर पर 19,962 मरीज का हिसाब बैठता है।
अब
सुविधाएं, डॉक्टर और अस्पताल बढ़ाने के लिए बजट चाहिए। लेकिन बजट की
स्थिति यह है कि राज्य में बनीं सरकारों ने स्वास्थ्य को हाशिए पर ही रखा
है। वर्ष 2015-16 में कुल बजट का 3.98 प्रतिशत यानी 12,104 करोड़ रुपये
स्वास्थ्य पर खर्च किए गए थे। वहीं 2017-18 में कुल बजट का 4.6 प्रतिशत
स्वास्थ्य पर खर्चा किया गया।
नीति आयोग के 2017-18 के स्वास्थ्य
सूचकांक के आधार पर इंडियास्पेंड द्वारा 21 जून, 2018 को प्रकाशित एक रपट
के अनुसार, उत्तर प्रदेश एक व्यक्ति की सेहत पर हर साल मात्र 733 रुपये
खर्च करता है, जबकि स्वास्थ्य सूचकांक में शीर्ष पर मौजूद केरल प्रति
व्यक्ति प्रति वर्ष 1413 रुपये खर्च करता है।
डॉ़ वैश्य के अनुसार,
"सरकार जो नीतियां बना रही है, व्यावहारिक नहीं हैं। थके हुए सिपाहियों से
जंग नहीं लड़ी जा सकती है। स्वास्थ्य सेवाओं को आकर्षक बनाने की जरूरत है।
स्वास्थ्य सेवा के मुखिया को कमजोर करके एजेंसियों से काम लेना भी रैंक को
कमजोर कर रहा है।"
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