भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते संगठन पर उनकी पकड़ है। साथ ही
केन्द्रीय राज्यमंत्री रहते हुए इलाके में उन्होंने विकास कार्य भी करवाया
है। मगर सपा-बसपा गठबंधन ने उनके सामने संजय चौहान को उम्मीदवार बनाया है।
इस बार जानबूझकर गठबंधन ने सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारा है। जबकि
कांग्रेस ने शिवकन्या कुशवाहा पर दांव लगाया है।
अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मिर्जापुर से 2014 में मोदी लहर में
जीत हासिल की थी। 2016 में अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में जगह दी गई।
उन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया।
उनके मंत्री हो जाने की वजह से इस सीट का महत्व इस बार और ज्यादा बढ़ गया
है। पांच सालों के विकास कार्यो के साथ ही जातिगत वोटों के सहारे वह चुनाव
मैदान में हैं।
कुर्मी वोटर और भाजपा के
पारंपरिक वोट से उन्हें अच्छी खासी उम्मीद है। लेकिन सपा-बसपा गठबंधन यहां
भी उनके लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है।
मछलीशहर से भाजपा सांसद रहे राम चरित्र निषाद को गठबंधन ने मिर्जापुर से
प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर कमला पति त्रिपाठी की
विरासत संभाल रहे ललितेश पति त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्रा के अनुसार, 2014 में नरेन्द्र
मोदी वाराणसी से, मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से उम्मीदवार थे। जिसके कारण
सबकी निगाहें पूर्वाचल पर टिकी थीं। अब 2019 में पूर्वाचल के परिणाम और भी
महत्वपूर्ण हो चुके हैं, क्योंकि मोदी सहित भाजपा व उसके सहयोगी दलों का
प्रोफाइल इन सालों में बहुत बदल चुका है। महेन्द्र पाण्डेय, अनुप्रिया
पटेल, मनोज सिन्हा या खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहक्षेत्र
गोरखपुर के परिणाम इन चेहरों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा तय करेंगे।
(आईएएनएस)
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