इसी प्रकार आगरा से
रामशंकर कठेरिया को पहले केंद्रीय राज्यमंत्री फिर अनुसूचित जनजाति आयोग का
अध्यक्ष बना रखा है।
इसके अलावा सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के क्षेत्र इटावा, मैनपुरी,
फिरोजबाद में भी पिछड़ा कार्ड खेलकर इनके वोट बैंक के साथ इनके गढ़ पर
भाजपा काबिज हो गई। उसका नतीजा रहा कि इस बार के लोकसभा चुनाव में सैफई
परिवार को मायूस होना पड़ा है। अब भाजपा ने पश्चिमी उप्र से उनके बड़े
नेताओं को अपने पाले में लाकर सपा की ताकत को कमजोर कर दिया है।
वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल किया
था।
इस चुनाव में उसने गैर यादव पिछड़ों और
गैर जाटव दलितों को तवज्जो दी थी। इसके लिए चुनाव मैदान में उसने मुख्य
रूप से पिछड़े और दलितों पर ही दांव लगाया था। इस बार मंत्रिमंडल में भी
उन्हें शामिल कर वर्ष 2022 के लिए बिसात बिछाने की कोशिश की है।
भाजपा सरकार द्वारा पार्टी ने मंत्रिमंडल में जो 18 नए चेहरे शामिल किए
हैं, उनमें कमोबेश वैसा ही जातीय समीकरण देखने को मिला है, जैसा वर्ष 2017
में मंत्रिमंडल गठन के वक्त था।
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