झांसी। बुंदेलखंड में चुनाव का मौसम आते ही डकैतों की यादें जोर पकड़ने लगी हैं क्योंकि इस इलाके में कई दशक तक डकैत चुनावी नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं। बीते डेढ दशक में चुनाव में डकैतों की भूमिका तो कम हुई है मगर यादें लोगों के बीच अभी भी जिंदा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उत्तर प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव होने वाले हैं, बुंदेलखंड में मतदान 20 और 23 फरवरी को होना है। सभी राजनीतिक दल भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जीत के लिए जोर लगाए हुए हैं। कोरोना महामारी के कारण पिछले चुनावों जैसा रंग तो नहीं है मगर सड़कों-गलियों में झंडे लहराते हुए दिख जाते है तो वहीं नारों की गूंज कभी-कभी सुनाई दे जाती है।
उत्तर प्रदेश वाले बुंदेलखंड में सात जिले है, विधानसभा की 19 सीटें आती हैं, पिछले चुनाव में सभी स्थानों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इस बार भाजपा के सामने वर्ष 2017 को दोहराने की चुनौती है तो वहीं विपक्षी दलों को अपना खाता खोलने के लिए जोर आजमाइश करना पड़ रही है।
बुंदेलखंड में अब से लगभग डेढ दशक पहले तक चुनाव कोई भी हो कई इलाकों में राजनेता डकैतों की मदद लेते रहे हैं, डकैतों की ओर से बाकायदा फरमान भी जारी किए जाते थे। लगभग डेढ़ दशक पहले की याद करें तो इस इलाके में ददुआ, निर्भय गुर्जर, फक्कड़, कुसमा नाइन, सीमा परिहार जैसे डकैत बीहड़ों में रहकर नेताओं के लिए काम किया करते थे।
निर्भय गुर्जर तो खुले तौर पर यह कहता था कि उसके पास चुनाव के समय बड़े नेताओं के संदेश आते हैं और जिस दल अथवा नेता से उसका सौदा हो जाता था उसके लिए वह गांव वालों को वोट देने के लिए कहता था। यह बात अलग है कि इन्हीं राजनेताओं में से एक का नाम उसने खुले तौर पर ले दिया था, उसी के चलते वह मुठभेड़ में न केवल मारा गया बल्कि उसका गिरोह ही खत्म हो गया।
जो डकैत डेढ़ दशक पहले बीहड़ों में रहकर चुनावी दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे उनमें से कई तो मारे जा चुके हैं अथवा कई अब भी जेल में है। लिहाजा इस बार के चुनाव में कोई डकैत तो सक्रिय नहीं है मगर लोगों को उनकी याद जरूर आ जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव के समय डकैतों का डर ज्यादा ही सताने लगता था।
बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता अमित इतिहास बताते है कि '' किसी दौर में डकैतों का चुनाव पर अच्छा खासा असर हुआ करता था। गांव के लोगों की मजबूरी हुआ करती थी कि डकैतों के फरमान के आधार पर मतदान करें, मगर हालात बदल चुके है, अब तो पहले की तुलना में एक प्रतिशत भी असर नहीं हैं। बीहड़ में न तो डकैत है और न ही उस दौर जैसा आंतक व डर है।''
जालौन जिले के माधौगढ़ क्षेत्र के एक बुजुर्ग बताते हैं कि '' चुनाव पंचायत का हो, विधानसभा का हो या लोकसभा का, डकैतों के सीधे संदेश गांव गांव आते थे कि किस उम्मीदवार और पार्टी को वोट करना है, वे तब तक डरे और सहमे रहते थे जब तक नतीजे नहीं आ जाते थे क्योंकि अगर उनके गांव का चुनाव परिणाम डकैत की इच्छा के विपरीत आया तो उनके लिए मुसीबत आना निश्चित रहती थी।''
डकैत गिरोह के चंगुल में रहे एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब वे डकैतों की गिरोह थे तब कई लोग चुनाव में समर्थन मांगने के लिए आया करते थे। डकैत और उस नेता के बीच लेनदेन की बातें भी होती थी। इस काम में पुलिस भी कई बार मध्यस्थता निभाती दिखी।
(आईएएनएस)
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