लखनऊ। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव अगले महीने होने जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ की पहली परीक्षा निकाय चुनाव में होगी। विधानसभा चुनाव में हार के बाद विरोधी दलों के बीच चल रही रार को भाजपा अपने लिए मुफीद मान रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
अगले महीने होने वाले निकाय चुनाव में आने वाले परिणाम से योगी के कुशल नेतृत्व की परीक्षा होगी। इस चुनाव में प्रदेश के 14 नगर निगमों में मेयर, 202 नगर पालिकाओं के अध्यक्षों एवं 430 नगर पंचायतों में चेयरमैन का चुनाव होगा। इनके 16993 वार्डो में भी पार्षद एवं सदस्य का भी चुनाव होना है। भाजपा इन सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। दावेदारों की लंबी सूची है, जिसकी स्क्रीनिंग का कार्य जिला इकाइयों द्वारा किया जा रहा है।
गत निकाय चुनाव 2012 में हुए थे, तब प्रदेश में सपा सरकार थी। उस समय 12 नगर निगमों में 10 पर भाजपा काबिज हुई थी। इनके 304 वार्डो मे भाजपा काबिज हुई थी, जबकि सपा, बसपा एवं कांग्रेस के पास 504 वार्डो आए थे। इसी तरह 192 नगर पालिकाओं में भाजपा के कब्जे में 47, सपा-बसपा के 130 तथा कांग्रेस से 15 अध्यक्ष जीते थे। इसी तरह 423 नगर पंचायतों में भाजपा को 38, सपा-बसपा को 352 तथा कांग्रेस को 21 चेयरमैन मिले थे।
इस तरह नगर निगमों में भाजपा भले ही मजबूत हो, लेकिन नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों में विरोधी दल सपा-बसपा मजबूत हैं। ऐसे में भाजपा के समक्ष नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों में अपना वर्चस्व बढ़ाना होगा।
वहीं विरोधी दलों में हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद रार मची हुई है। सपा की बात करें, तो कभी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में शिवपाल यादव की नंबर दो ही हैसियत रखते थे। लेकिन आज वही अखिलेश के मिशन में पलीता लगाने की तैयारी कर रहे हैं। यही हाल कमोबेश बसपा में है।
इन दिनों बसपा अध्यक्ष मायावती एवं नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। दोनों एक-दूसरे को जमीन दिखाने में लगे हैं। इस तरह विपक्ष में मची रार का लाभ भाजपा को निकाय चुनाव में मिल सकता है।
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