लखनऊ। भारत के कई शहरों ने बिजली वितरण प्रणाली में सुधार के लिए निजीकरण का मार्ग अपनाया है। इसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करना, तकनीकी दक्षता लाना और वितरण में होने वाले नुकसान को कम करना है। दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों में निजीकरण के अलग-अलग मॉडल सफलतापूर्वक लागू किए गए हैं, जहां बिजली चोरी में कमी आई है और उपभोक्ता सेवाओं में सुधार हुआ है। ओडिशा तो पूरे वितरण क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने वाला पहला राज्य बन गया है।
उत्तर प्रदेश में भी ग्रेटर नोएडा में नोएडा पॉवर कंपनी लिमिटेड (एनपीसीएल) द्वारा वर्षों से बिजली वितरण किया जा रहा है, जबकि आगरा में टोरेंट पॉवर फ्रेंचाइजी मॉडल के तहत कार्यरत है। हालांकि, कानपुर में निजीकरण की योजना को कर्मचारियों के विरोध के कारण फिलहाल रोक दिया गया है। यह दर्शाता है कि बिजली वितरण का निजीकरण एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसकी सफलता राज्य की नियामक व्यवस्था, निगरानी क्षमता और उपभोक्ता हितों की सुरक्षा पर निर्भर करती है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है ताकि उपभोक्ताओं को निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। निजीकरण को एक ऐसे अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए जहां तकनीकी उन्नयन, बेहतर प्रबंधन और जवाबदेही के माध्यम से उपभोक्ताओं का विश्वास जीता जा सके। यह केवल स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि एक भरोसेमंद और कुशल वितरण प्रणाली स्थापित करने का प्रयास है।
दिल्ली, गुजरात और ओडिशा के अनुभवों से सीख लेते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार को एक ऐसी पारदर्शी और जवाबदेह निजीकरण नीति तैयार करनी चाहिए जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे और कर्मचारियों की चिंताओं का समाधान करे। यह वक्त की जरूरत है कि उत्तर प्रदेश बिजली वितरण के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करे, जहां आधुनिकीकरण उपभोक्ताओं के लिए बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करे।
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