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फूलपुर : भाजपा के लिए नाक की लड़ाई, गठबंधन के सामने गढ़ बचाने की चुनौती

Phulpur: The fight of the nose for the BJP, the challenge to save the stronghold in front of the alliance - Lucknow News in Hindi

फूलपुर। पंडित जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रहे फूलपुर में इस बार राजग और सपा-बसपा गठबंधन के बीच लड़ाई है। लेकिन कांग्रेस इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में है। भाजपा के लिए यह सीट जहां नाक की लड़ाई है, वहीं गठबंधन की तरफ से लड़ रही सपा के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, क्योंकि 1996 से लेकर 2004 तक हुए चार चुनावों में यहां से सपा ने जीत दर्ज कराई है।


वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने पहली बार यहां से जीत दर्ज की थी। भाजपा उम्मीदवार और प्रदेश के मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने सपा उम्मीदवाद धर्मराज पटेल को तीन लाख से भी अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था। लेकिन 2018 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सहयोग से यह सीट भाजपा से छीन ली। सपा और बसपा इस बार भी एक साथ हैं।

किसी समय फूलपुर कांग्रेस गढ़ था। यहां से पंडित जवाहर लाल नेहरू मृत्युर्पयत सांसद रहे। उनके बाद उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित यहां से सांसद रहंीं। लेकिन वक्त बदलने के साथ राजनीति में जातीयता हावी हुई और कुर्मी बाहुल्य इस सीट से कई सांसद जातीय आधार पर निर्वाचित हुए। पार्टियां भले बदलीं, मगर नेता उसी जाति के रहे।

बाद में यह क्षेत्र समाजवादी पार्टी (सपा) का गढ़ बन गया। 1996 से 2004 तक हुए चार लोकसभा चुनावों में सपा ने यहां से लगातार जीत दर्ज कराई। उसके बाद 2009 में बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि कांवरिया ने इस सीट से जीत दर्ज की। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में जातीय समीकरण टूटे तो भाजपा के केशव प्रसाद मौर्या यहां से सांसद चुने गए। लेकिन 2018 के उपचुनाव में सपा ने वापस इस सीट पर कब्जा कर लिया।

मौजूदा चुनाव में 2014 की मोदी लहर नहीं है और जातीय समीकरण एक बार फिर हावी होता दिख रहा है। सभी दलों ने जातीय समीकरण के आधार पर ही उम्मीदवार उतारे हैं।

फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 1,913,275 मतदाता हैं। जिसमें पुरुष 1,063,897 और महिलाएं 849,194 हैं। यहां सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब सवा दो लाख है। मुस्लिम, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी इसी के आसपास है। लगभग डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं।

कांग्रेस ने अपना दल (कृष्णा गुट) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल के दामाद पंकज निरंजन को उम्मीदवार बनाया है, तो भाजपा ने भी इसी समुदाय से आने वाली पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को मैदान में उतारा है। जबकि सपा-बसपा गठबंधन ने पंधारी यादव को उम्मीदवार बनाया है। सपा से अलग हुए शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भी यहां ताल ठोक रही है और उसने प्रिया पाल सिंह को मैदान में उतारा है।

इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं -फूलपुर, सोरांव, फाफामऊ, इलाहाबाद उत्तरी और इलाहाबाद पश्चिमी। सोरांव सीट पर अपना दल का कब्जा है, बाकी चार सीटें भाजपा के पास हैं।

राजनीतिक विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी के अनुसार, "कुर्मी बहुल इस सीट पर भाजपा ने केशरी देवी पटेल को उतारकर ट्रंपकार्ड चला है तो कांग्रेस ने कृष्णा पटेल से हाथ मिलाकर उनके दामाद को उम्मीदवार बनाकर पेंच फंसा दिया है। ऐसे में पटेल वोटों में बिखराव तय माना जा रहा है। हालांकि इस क्षेत्र में पंकज निरंजन का जनाधार नहीं है। सोनेलाल पटेल का क्षेत्र होने के कारण कुछ वोट उनके पाले में जा सकते हैं। मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण मतदाता यहां निर्णायक होंगे।"

द्विवेदी ने बताया, "कुंभ के कारण विकास के काफी काम हुए हैं। रेलवे ओवरब्रिज, अंडरब्रिज और बड़े पैमाने पर सड़कों के चौड़ीकरण, हाइवे निर्माण और सौंदर्यीकरण का काम हुआ है। लेकिन ग्रामीण अंचल में विकास की रफ्तार धीमी है। बेरोजगारी, बाढ़ और औद्योगिक विकास में पिछड़ापन प्रमुख मुद्दा है।"

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक समीरात्मज मिश्र कहते हैं, "फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी वोटर सबसे अधिक हैं। इनमें भी पटेलों की संख्या सबसे ज्यादा है। ऐसे में दलों ने पटेल वोटरों को अपने खेमे में लाने की कवायद शुरू की है। सपा को बसपा का साथ मिलने से गठबंधन उम्मीदवार को दलित और अल्पसंख्यक वोट मिलने की संभावना है। लेकिन प्रयाग का कुछ उत्तरी और पश्चिमी हिस्सा इस क्षेत्र में मिल गया है, जहां सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा तबका रहता है। यह तबका शायद ही गठबंधन को वोट करे।"

उपचुनाव में हार के कारण भाजपा की काफी किरकिरी हुई थी, इसलिए आम चुनाव में यह सीट भाजपा के लिए नाक की लड़ाई बनी हुई है। भाजपा यहां पूरा जोर लगा रही है, और उसके बड़े नेता यहां चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लेकिन महागठबंधन की बड़ी चुनौती उसके सामने है। 2018 के उपचुनाव में सपा के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र पटेल को पराजित किया था। इस बार सपा ने पंधारी यादव को मैदान में उतारा है। फूलपुर जिले में संगठन में पंधारी यादव की मजबूत पकड़ मानी जाती है।

सेरांव क्षेत्र के रामदीन हालांकि अभी भी मोदी लहर की बात करते हैं। उनके अनुसार, पटेल वोट के बिखराव की कमी ब्राह्मण मतदाता पूरा करेंगे और भाजपा को लाभ होगा।

फाफामऊ के जीशान मोदी लहर को नकारते हैं। वह कहते हैं, "भाजपा सबका साथ सबका विकास की बात करती है, लेकिन उसने कितने मुसलमानों को टिकट दिया है। गठबंधन मजूबत लड़ रहा है।"

दलपतपुर के ज्ञानप्रिय द्विवेदी भाजपा की बखान करते हैं। उन्होंने कहा, "भाजपा सरकार ने फूलपुर में फ्लाईओवर बनवाकर जाम की समस्या से निजात दिला दी है। यह शहर की बहुत बड़ी समस्या थी। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी भाजपा ने बड़े काम किए हैं।"

लेकिन टिकरी गांव के रामशंकर यादव बाढ़ की समस्या से परेशान हैं। उन्होंने कहा, "हर बार दर्जनों गांव वरुणा नदी की बाढ़ की चपेट में आते हैं। यहां यह समस्या लगभग 60 वर्षो से अधिक समय से है। लेकिन किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया है। बाढ़ से किसानों की फसल बर्बाद होती है और जानवर बह जाते हैं।"

फूलपुर सीट के लिए छठे चरण में 12 मई को वोट डाले जाएंगे। मतगणना 23 मई को होगी।

--आईएएनएस

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Web Title-Phulpur: The fight of the nose for the BJP, the challenge to save the stronghold in front of the alliance
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